Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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टूट गया संबंध स्नेह का

 

टूट गया संबंध स्नेह का

पंगु हुई है मानवता
पशु प्रवृत्ति के द्वार घर रही
दृढ़ प्रतीज्ञ यह दानवता।
बुझा रहे जीवन ज्योति को
टूटा मन टूटा दर्पण
डरता हूं फितरत बाजों से
कटुता ही जिनका अर्पण।
तर्पण कैसे कर दूं उनको
जिनका मृदु विश्वास छला
कैसे उठे तरंग अधर पर
सहज स्नेह सद्भाव ढला।
आगंतुक इस मग में बिखरा
' मंगल 'देख रहा दर्पण
डरता हूं फितरत बाजों से
कटुता ही जिनका अर्पण।।
- सुख मंगल सिंह

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