Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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विभीषिका द्वारे

 

विभीषिका द्वारे

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ऐसी बड़ी  महामारी में 
ध्यान में नहीं आया।
मृत्यु की संख्या बढ़ी हुई
विचार बदल नहीं पाया।
कुबुद्धि बढ़ी ताकत बन
शरीर पर पड़ी छाया।
दुःख का पहाड़ गहराया
आफत लेकर आया।
संस्कारों से किया किनारा
ज्ञान में नहीं आया।
संस्कृति भूला बिसराया
विनाश की मेढर तक आया।
सभ्यता ताख पर टांगा
कलह जीवन में पाया।
' मंगल ' सबको  समझाया
देखने अपने घर नहीं धाया।
जिंदगी मौत की राह पर
लोगों को समझाया।
क्षणभंगुर है यह काया
परिस्थिति ने दास बनाया।
नफारत की दीवार तोड़ो
मुश्किल में है काया।
कठिन कहर कोराना
सबक सिखाने आया।
अटका प्राण प्रतिष्ठा दांव
दुश्मन लेकर आया।
नियानुसार कानून मानो
जीवन अनमोल बचाना।
- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी

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