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Dr. Srimati Tara Singh
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बसंती धुप

 

बसंती धुप

खिल उठी बसंती धुप

फिजा भरी अंगड़ाई

चली हवा सुगन्धित ऐसी

प्रिये ने -जब मुस्कायी  | 


रूप बदल नित नवीन

श्रृंगार ले रौनक लाई

अधरों- मुस्कान रहा

प्रिये जब ली अंगड़ाई  | | 


मन मलिन ज्यों हुआ

सम्मुख तब वह आई

खिली बसंती धुप नई

प्रिये मुखमन मुस्कायी  | 


हृदय-गुंजित स्वर बेला

मंगल - बुद्धि ठकुराई

प्रेमी प्यासा पौरुषपागल

प्रिये पास जब दिखाई | 


सब हुए दीवाने तुम्हारे

जादू कैसा रे चलाई

खिली बसंती धुप नई

प्रिये जब तुम मुस्कायी ||


-सुखमंगल सिंह


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Sukhmangal Singh

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