बसंती धुप
खिल उठी बसंती धुप
फिजा भरी अंगड़ाई
चली हवा सुगन्धित ऐसी
प्रिये ने -जब मुस्कायी |
रूप बदल नित नवीन
श्रृंगार ले रौनक लाई
अधरों- मुस्कान रहा
प्रिये जब ली अंगड़ाई | |
मन मलिन ज्यों हुआ
सम्मुख तब वह आई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये मुखमन मुस्कायी |
हृदय-गुंजित स्वर बेला
मंगल - बुद्धि ठकुराई
प्रेमी प्यासा पौरुषपागल
प्रिये पास जब दिखाई |
सब हुए दीवाने तुम्हारे
जादू कैसा रे चलाई
खिली बसंती धुप नई
प्रिये जब तुम मुस्कायी ||
-सुखमंगल सिंह
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Sukhmangal Singh
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