जो आयो इहिं कलि काल आधार हरि नाथ हौ आधार,
नारद सुख आदि शंकर कियो जी यही विचार।
स्तुति सकल मथत दधि पायो संतन हित घृत - सार ,
देशों दिशा गुण कर्म रोक्यो माया को जस जाल।
हरि को भजन करके ही ' मंगल ' भव भारत मिट जाय,
नारद सुख आदि शंकर कियो जी यही विचार।।
राम भजन उच्चारण करें सहज चरण का प्रताप,
सनक सनन्दन सनत्कुमार मिलि उतरिए सागर पार।
काल फिरता बिलार तनु धरि है ज्वलित जल धार,
विषय विकार निकाल मन तूं उतरहिं सागर - पार।।
भज 'मंगल ' गोविंद गन राम ही ह्वय तारन - तार,
धार ना निरखे सरयू जी कौ कत राउर हित को सार।
गोरस चाहत फिरते हौ मानौ गोरस चाहत नांहिं ,
राम - राम सो करत जाहिं राम की करता काहिं ।।
- सुख मंगल सिंह
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