मैं गीत गाता हूँ
हां भाई मैं गीत गाता हूं
तरह-तरह के गीत सुनाता हूं
किसिंग किसिंग के गीतों पर
मैं रोज-रोज इतराता हूं।
कुछ गीत रचा मस्ती में
कुछ गीत रचा रास्ते में
कुछ सर्दी की मस्ती में
कुछ गीत रचा बस्ती में।
यह गीत प्रीतम को पास बुलाएगा
और अखिल अक्ल ठिकाने लाएगा
जिन लोगों ने बेचैन हो बेचा ईमान
उन्हें आप न सुनकर हों और हैरान
मैं सोच समझ कर गीत सुनाता हूं।
जी हां अपनी अपनों से कहा जाता हूं
जी हुजूर अपनी पत्नी को रिझाता हूं
मैं तो तरह-तरह के गीत सुनाता हूं
हां भाई मैं गीत गाता हूं।
यह गीत रात को गाकर देखो
यह गीत गजब है उठा कर देखो
यह गीत सुनसान में गया था
इस गीत पर मौसम मीठा आया था।
यह गीत भूख -प्यास भगता है
इस गीत को सुन मौसम आता है
यह गीत अपनों को बुलाता है
अंगड़ाई तरुणाई ले कर आता है।
हां भाई मैं गीत गाता हूं
तरह-तरह से अपनों को रिझाता हूं।
- सुख मंगल सिंह
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