माँ
त्राता हो जननी जन की
भरा हुआ दृग - पानी
आंचल में वात्सल्य संजीवनि
शिशु पीते कल्याणी।
मां तेरा जन - मानस मंगल
तूं जन जीवन दाता
तेरे कृपा सिंधु से लहरे
दृढ़ बल पौरुष माता।
तुम सा तीर्थ कहीं नहीं जग में
समता झंदर्ष न पाऊं
मातृ भक्ति की सुषमा' मंगल '
जग में सदाअअअ।
चलना हमें सिखाई जननी
पढ़ना हमें सिखाई
तेरी करुणा ममता से जन
जीवन उश्रृण न पाई।
- सुख मंगल सिंह
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