"मंगल पद रज मतवाला"
हस्त खेह तन पर डारे मग
चलता है मतवाला
जिस पद- रज से तरी अहिल्या
ढूंम रहा शुण्ड वाला।
उस पद - रज के छुवन से देखो
प्रस्तर बन गयि नारी
नाथ बिना पग धोये कैसे
गंगा - पार उतारीं।
काठ जहां कोमल पाथर से
बन जाएगी नारी
कैसी सबका पेट भरूंगा
संशय हित में भारी।
आज्ञां पाकर चरण पखारा
भरे कठौता पानी
नाच उठी गंगा कठवत में
पग- धोवत कल्याणी।
चरण पटोलत मांतु जानकी
सोइ पद ग्रहण निषाद
कहत नाथ मिट गये दारुण दुःख
मंगल पद- रज- जादू।।
- सुख मंगल सिंह
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