''नायिका प्रधान काव्य कृतिकाल"
गीतिका की प्रधानता के जनक जो
वही कला की महत्ता बढ़ने के कारण,
लगभग प्रमुख लोगों के द्वारा ही,
व्यक्तिवाद का एक ऐसा विकास हुआ।
सामाजिक सामानाधिकार की भावना,
का व्यापक प्रचार - प्रसार किया गया।
ऊंच नीच सामाजिक अधिकार बंटवारा
ऑ समाज में वर्ण व्यवस्था का ढांचा।।
फिर भी लोगों के भीतरी हृदय में,
समभाव का प्रादुर्भाव हुआ था।
वैधानिक समानता की सुविधाएं,
शिक्षण संस्थाओं, अदालतों में बनी।।
इससे व्यक्ति भावना को बल मिला साहित्यमें अन्तर्भावना स्वीकृति मिली।
व्यक्तिवाद की उत्तरोत्तर वृद्धि हुई,
कला की परंपरा परिपाटी टूटती गई।।
नया महल नयी नीव पर खड़ा हुआ,
आंदोलन के दौरान मजबूत होता रहा।
नई आस्था की उदभावना प्रबल रही,
पुरानी व्यवस्था उखाड़ना सहज न था।
पूर्णतः पुरानी रूढ़ियां विखर नहीं गईं,
अपितु उस पर नई दृष्टि ने रंग भरा।
काव्य कृतियां जो नायक प्रधान लिखते,
वह सब नाईका प्रधान लिखी जाने लगीं।।
हरि औध जी का ' प्रिय प्रवास'और
मैथिली शरण गुप्त जी का साकेत ।
हरिऔध जी के काव्य में राधा प्रमुख,
गुप्त जी के काव्य में उर्मिलाचरित्र।।
हरिया जी के प्रियवर प्रवास काल में उर्मिला,
एक समाज सेविका के रूप में सामने आई।
वही राधा सूर में अलौकिक प्रेम की पराकाष्ठा,
आध्यात्मिकता की पावन प्रतीक जी।।
लोक मंगल भावना को प्रोत्साहन दिया गया,
आदर्शवाद के प्रति आप आप आस्था प्रकट हुई,
युग की विषम जटिलताएं आदर्शवादी,
प्रवृत्ति के कारण स्पष्ट रुप नहीं पा सकी।।
- सुख मंगल सिंह
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