Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अब के बरस

 

 

this year


बिता दी है फाको में उम्र,

मिले फाकों से निजाद,
अब के बरस|
|
न लगे घाव पे नमक ,
लगे घाव पे मरहम,
अब के बरस|

वादों की थाली न मिले,
मिले मुहं को निवाला,
अब के बरस|
,

बुजर्गो को मिले आराम,

नौजवानों को काम,

अब के बरस|


ऊँचाईयों के डर से बैठे हैं जो,
सहमे सहमे से,
उन परिंदों को मिले,
खुला आसमान अबके बरस

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