तालीम पा कर वो भरना चाहती थी
परेशान लोगों के घाव,
पर दरिंदों ने उसके जिस्म को रूह को दे दिए घाव
दे कर जान उसने दिखा दी मुल्क को नई राह
ना बक्शो किसी गुनाहगार को ना बक्शो
कोई गुनाह
ग़मगीन है ऑंखें होंठों पर हें नारे
सीने में लिए अंगारे
कहने को दिल की बात
निकल पड़े सड़कों पर नौजवान हमारे
कभी कहतें हें देवी कभी कहतें हें भगवान् से बढ़ कर
अरे औरत को बराबरी का दर्जा दो
नहीं है वॉ किसी से बढ़कर या कमतर
जो मशाल जला कर गई वो बहादुर बच्ची
उसे जलाए रखना है
इंसानी बस्ती से भेड़ियों को दूर रखना है
आंधी हो तूफ़ान हो ,इस मशाल को थामे रखना है
कैसी घबराहट कैसा डर
अब लड़ते लड़ते जीना है लड़ते लड़ते मरना है
उस बहादुर बच्ची की शहादत को सिर्फ खबर नहीं बनाना है
ख़बरों से आगे ले जाना है
मुल्क के बह्शियों को दरिंदों को
सबक सिखाना है
SUNIL JAIN
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