Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी आँखों का समंदर

 

रोज कोई उम्मीदों की किश्ती डूबती है,

कितना गहरा है मेरी आँखों का समंदर|


रोज बढ़ता जा रहा दुनिया का उजियारा,

साथ ही बढता जा रहा अँधियारा मेरे अंदर|


ताकत को करता है सलाम ,हारे को हरा कर,

समझता है आदमी,खुद को सिकंदर |


कोई छीनता है रोटी ,कोई छीनता है आसरा,

कोई जिंदगी तक छीन लेता है ,

वाह रे दुनिया के सिकंदर |


कहाँ तक गिरेगा इंसान,सोच सोच कर,

हैरान है भगवान्,हैरान है पीर पैगम्बर|

Sunil Jain

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