Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं क्षणिक हूँ...!

 

मैं ठहरता नहीं
मुझे आदत है
चलने की...
लेकिन
तुम ही रोक लेते हो मुझे
अपने साथ
आने को
कदम से कदम मिलाने को
तुम्हारे अनुरोध पर
एक बार
ठिठक तो जाता हूँ
हाथ भी बढ़ाता हूँ
फिर
तुम्हारा संदेह......
और मैं
खो जाता हूँ
तुमसे विरक्त हो जाता हूँ
बस.....,
अब बस,
तुम नही.....,
तुम तो बिल्कुल नहीं।
परन्तु
रिस्ता अटूट है
इसलिए
यह विरक्तता भी झूठ है।
झूठ है...झूठ है.....।

 

 


Sunil Srivastava

 

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