ठोकर लगेगी खुद ही सम्भल जायेंगे रक़ीब,
आदत न बदली दिल से निकल जायेंगे रक़ीब।
ऐसा न हो ज़माने की लग जाये बद्दुआ,
शहरों की ख़ामोशी से दहल जायेंगे रक़ीब
उनके वो कॉंच के घरौंदे तोड़ देंगे लोग,
कहते थे दुनिया को जो बदल जायेंगे रक़ीब।
होगी कहीं गुमनाम सी सड़कों पे उनकी लाश,
परिंदों की दावतों से पिघल जायेंगे रक़ीब।
Sunil Srivastava
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