सुनीता शर्मा
कल उसके चेहरे की
मासूमियत ने मुझे
भीतर तक भीगो दिया था
लेकिन आज उसके चेहरे की
कठोरता ने कल के मासूम
अहसास को दफन कर दिया
षेष बच गई है वो राख
जिससे मैं कल के
अहसास को बचा लेना चाहती हँू
क्योंकि उसके चेहरे के उतार चढ़ाव
इतनी तीव्र गति से हो रहे हंै
कि महसूस होने लगता है
कि आने वाले कल कहीं बेबाक
होकर आज की भयावहता में न खो जाए
फिर कहाँ मिलेंगे तो कल
जिन्हे अभी गुज़रना है
कहीं ऐसा न हो कि
वो कल कहीं
वक्त से पहले ही गुज़र जाए
फिर तो मात्र ढेर सारी राख
ही कल के वजूद
का निषां होगी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY