Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

सागर

 

सुनीता शर्मा

 

 

ये सागर है जिसे
हर कोई जानता है
लेकिन पहचानता कोई बिरला ही है
कभी-कभी तो लगता है
ये सागर ऊपर से जितना
षान्त नजर आता है
भीतर से उतना ही
उद्वेलित है
षायद इसी उद्वेलन मंे
सागर कई तुफानों को क्षय दे देता है
तुफान जो कि आते तो हैं
किन्तु सागर को अधीर कर जाते हैं
उसकी क्षमताओं से खिलवाड़ कर जाते हैं
तुफानों के जाने के बाद
सागर जैसे लहरो को
आमंत्रण देता हुआ कहता है
कि आओ चंचल लहरियों
मुझे फिर से तृृप्त कर जाओ
मेरे विषाल हृदय - पटल पर
कुछ क्षण को ठहर जाओ
और ऐसा कहते-कहते जैसे सागर
स्वयं अपने पर ही मुस्कुरा उठता है
अपनी गहराइयों को स्वयं ही नापने
लगता है
और अन्त मंे नापते-नापते
फिर से
सागर बन जाता है।

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ