जिंदगी हमसे और हम ज़िन्दगी से पराये हुए
कभी जान थे तेरी महफ़िल की आज मेहमान हैं बिन बुलाये हुए
बरसों लग गए जिस पौधे को सींच कर पेड़ बनाने में
समेट रहे हैं उसी के पत्ते जलाये हुए
कभी मिलो फुर्सत से फसानो का दौर चले
बड़े दिन हुए किसी को हाल-ए-दिल सुनाये हुए
यक़ीनन मुझे अंधेरों से घेरा हुआ है मगर
मैं फिर भी बैठी हूँ मन में आस का दीप जलाये हुए
मेरी कहानी तो सिमट जायेगी चंद अलफ़ाज़ भर में
फिर क्या सुनेगे लोग दूर दूर से आये हुए
चलो ये भी खूब रही कि खुदा का सहारा रहा
नहीं तो मुमकिन नहीं था जीना अपना बोझ उठाये हुए
इश्क़ कर लिया तो सुकून ये रहा दिल को
कुछ तो कर लिया दुनिया में आये हुए !
सुनीता स्वामी
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