Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वादे

 

आओ तुम्हें तुम्हारे वादों में सूखी दरारें दिखाती हूँ ..
वादे तुम करके भूलते हो.. और उदास मैं हो जाती हूँ ..

 

कब कहती हूँ...तोड़ लाओ सितारे आसमान से ..
मैं तो खुद सितारे टूटने के इंतज़ार में.. आंगन में सो जाती हूँ !

 

तुमसे तुम्हारा थोड़ा वक़्त मांगती हूँ तो करती हूँ क्या बुरा..
तुम्हें तो खबर तक नहीं होती ,, और मैं रो कर भी चुप हो जाती हूँ..

 

माना हर पल साथ रहना मुमकिन नहीं है ओ मेरे हमसफ़र ..
पर दो पल जो तू रहे मेरे साथ ..वो पल मेरे हो येही सपना सजाती हूँ ..

 

आओ तुम्हें तुम्हारे वादों में सूखी दरारें दिखाती हूँ ..
वादे तुम करके भूलते हो.. और उदास मैं हो जाती हूँ ..

 

 

सुनीता स्वामी

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ