सुशील शर्मा
मेरे मन का दीप जलाने आ जाओ।
जीवन की बगिया महकाने आ जाओ।
परिभाषाएं प्रेम की विस्तृत कर दो तुम।
जीवन को मधुमास बनाने आ जाओ।
साथ हमारा जिस पल छोड़ा था तुमने।
उस पल का विन्यास सजाने आ जाओ।
जीवन ठहरा ठहरा सा अब लगता है।
सरिता सी निर्मल बहने आ जाओ।
रीता सा बीता है एक एक पल मेरा।
मन को सतरंगी सा रंगने आ जाओ।
आपा धापी में ही पूरा जीवन गुजर गया।
अब तो जीवन को ठहराने आ जाओ |
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY