Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आ जाओ

 

सुशील शर्मा



मेरे मन का दीप जलाने आ जाओ।
जीवन की बगिया महकाने आ जाओ।



परिभाषाएं प्रेम की विस्तृत कर दो तुम।
जीवन को मधुमास बनाने आ जाओ।



साथ हमारा जिस पल छोड़ा था तुमने।
उस पल का विन्यास सजाने आ जाओ।



जीवन ठहरा ठहरा सा अब लगता है।
सरिता सी निर्मल बहने आ जाओ।



रीता सा बीता है एक एक पल मेरा।
मन को सतरंगी सा रंगने आ जाओ।



आपा धापी में ही पूरा जीवन गुजर गया।
अब तो जीवन को ठहराने आ जाओ |

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ