सुशील शर्मा
गिरहबान में आओ अपने हम झाँकें।
दोष दूसरों के देखो हम न ताकें।
छींटा कशी करें औरों पर क्यों।
अपने कामों को हम क्यों न खुद आंकें।
फेंके तेरे घर हम पत्थर क्यों ?
अपने घर के सीसे को क्यों न हम ताकें।
एक ही है जब तेरा दर और मेरा दर
क्यों इक दूजे की दीवारों को हम नाकें।
तेरे दुःख और मेरे दुःख संग पलते हैं।
क्यों न इन दर्दों को मिल कर हम फांकें।
तेरे घर की मैं और तू मेरी जाने।
फिर क्यों हम आपस में लंबी हाँकें।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY