सुशील शर्मा
अपने कष्टों को सहकर
जो पर उपकार रचाता है।
अपने दुःख को हृदय सात
कर जो न किंचित घबराता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
देख कष्ट दूसरों के जो
अविरल अश्रु बहाता है।
परहित के परिमाप निहित
निज कष्टों को अपनाता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
अन्यायों के अंधियारों में
न्याय के दीप जलाता है।
शोषित वंचित पीड़ित के जो
मौलिक अधिकार दिलाता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
अपनी इंद्रियों को वश में रख
मन संयमित कर जाता है।
संघर्षों से लड़कर जो अपना
जीवन सुघड़ बनाता है ।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
राष्ट्र प्रेम की वलिवेदी पर
जो अपना शीश चढ़ाता है।
मातृभूमि की रक्षा में जो
अपना सर्वस्य लुटाता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
मृत्यु से आंख मिला कर जो
मृत्यंजय बन जाता है।
काल के कपाल पर जो
स्वयं भाग्य लिख जाता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
माता पिता की सेवा कर जो
इस धरा पर पुण्य कमाता है।
वसुधैवकुटुम्बकं के विचार
को जो मन से अपनाता है।
वही श्रेष्ठ मानव,जीवन में
आत्म विजेता कहलाता है।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY