ओस की बूंदें
चमकती मोती सी
घास पे सोतीं।
कोहरा घना
ठण्ड में सिकुड़ता
वो अनमना।
ठंडी चादर
कोहरे का लिबास
ओढ़े सुबह।
जले अलाव
गांव के आँगन में
लगी चौपाल।
पूस की रात
ठिठुरती झोपडी
सिकुड़े तन।
प्यारी सुबह
कोहरे की रजाई
ओढ़ के आई।
एक तपन
अलाव अलगाव
एक चुभन।
हिम का पात
शीत कालीन छुट्टी
सैलानी मस्त।
जाड़े से लदी
कुहरे का आँचल
ठिठुरी नदी।
रश्मि किरण
ओस बिंदु पे पड़ी
मोती की लड़ी।
सुशील शर्मा
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