Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बच्चों की सोच

 

सुशील शर्मा

 

 

जंगल के स्कूल में शेर सिंह प्राचार्य थे।जंगल के सभी बच्चे उनके स्कूल में पढ़ते थे।
हाथी चंद हिंदी के शिक्षक थे,लोमड़ प्रसाद सामाजिक विज्ञान पढ़ाते थे, भालू प्रसाद संस्कृत के शिक्षक थे, धनवंती घोड़ी विज्ञान की शिक्षिका थी।
आज शिक्षक दिवस पर सभी बच्चों ने धनवंती मेडम से कहा कि आप प्राचार्य महोदय से बाल मेला लगाने की अनुमति दिलवाओ।हम सभी अपनी अपनी दुकानें लगाना चाहते हैं।धनवंती मैडम ने कहा तुम चिन्तामत करो लगा लो मैं प्राचार्य महोदय से बात करूंगी।
स्कूल के समय से पहले ही सभी बच्चों ने अपनी अपनी चाट, खोमचे, और अन्य सामग्री की दुकानें लगा लीं।
स्कूल के लगने की घंटी बजी तो सभी लोग प्रार्थना स्थल पर आए।प्राचार्य शेर सिंह भी प्रार्थना स्थल पर पहुंचे बाजू में बच्चे छोटी छोटी दुकानें लगाए हुए थे।
"ये दुकानें किस ने लगाई किस ने अनुमति दी"शेर सिंह चिल्लाएं।
"जी मैंने दी है "डरते हुए धनवंती मैडम बोलीं।
"मैडम ये बच्चों के पढ़ने का समय है या मौज मस्ती का"शेरसिंह ने मैडम से प्रश्न किया।
"आप प्रेयर के बाद मेरे कक्ष में आइए"शेर सिंह ने आदेशात्मक स्वर में कहा।
सभाकक्ष में सन्नाटा था प्रेयर के बाद प्राचार्य महोदय शेरसिंह के कक्ष में धनवंती मैडम की पेशी हुई।
"इस विद्यालय की प्राचार्य आप हैं या मैं"शेरसिंह ने गुर्राते हुए कहा।
"जी आप"धनवंती मैडम ने कहा।
"फिर मेरी अनुमति के बगैर आपने इन्हें कैसे दुकान लगाने को कहा"शेरसिंह ने बात की तह तक जाते हुए कहा।

 

"सर कल बच्चे मेरे पास आये थे आपसे अनुमति के लिए कहा था किंतु आप मीटिंग में थे उन्होंने जो वजह बताई उस कारण में इनकार नही कर सकी"धनवंती मैडम ने सफाई देते हुए कहा।

 

"हम भी तो सुनें ऐसी क्या महत्वपूर्ण वजह है?"शेर सिंह ने प्रश्न वाचक दृष्टि से धनवंती मैडम को देखा।
"सर हमारे विद्यालय में कक्षा नवमी का एक छात्र है गोलू बंदर एक दुर्घटना में उसके माता पिता दोनो शांत हो गए और अब वह अनाथ है कुछ दिनों से बीमार चल रहा है ये बच्चे आज की कमाई से उसकी सहायता करना चाहते है इस कारण से मैंने आप से बगैर पूछे अनुमति दे दी। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।मैं अभी इन सब दुकानों को बंद करवाती हूँ।" धनवंती मैडम ने कक्ष से बाहर जाने को उद्दत हुईं।

 

"रुकिए मैडम" प्राचार्य शेर सिंह की आवाज़ गूंजी।
"आप सभी बच्चों और स्टाफ को इकठ्ठा करें और भी बच्चों से दुकान लगवाए ,हम सभी उन बच्चों की सहायता करेंगे और बालदिवस के अवसर पर उस गरीब बच्चे की जितनी अधिक मदद हो सके हम करेंगे" शेर सिंह ने धनवंती मैडम की ओर प्रशंसा भरी दृष्टि से देखा।
उस दिन सबने पहलीबार देखा कि प्राचार्य शेरसिंह हर बच्चे की दुकान पर जाकर कुछ न कुछ खरीद रहें है।
शाम को सभी बच्चों ने जितना भी समान बेचा था वो सारे पैसे उन्होंने प्राचार्य महोदय की टेबिल पर जमा कर दिए।
शेरसिंह अपने विद्यालय के बच्चों की सोच से अभिभूत थे।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ