सुशील कुमार शर्मा
बसंत का त्यौहार विद्या का त्यौहार है। जिस दिन हम पशुता से मनुष्यता की ओर बढ़ने की तैयारी आरम्भ करते हैं। इसमें नई नई उमंगें उत्पन्न होती हैं। इससे हम शोभा और सौंदर्य की वृद्धि करना सीखते हैं। जिस प्रकार से ऋतु में परिवर्तन होना आरम्भ होता है उसी तरह से हमारे जीवन में भी नवीन परिवर्तन का श्री गणेश होना चाहिए।बसंत के दिन सरसों, अरहर व अन्य प्रकार के पीले फूल लाये जाते हैं। उनका अभिप्राय यह होता है कि हमारा जीवन भी फूल जैसा आदर्श बनना चाहिए। फूल खिलता है, संसार को सुगन्धि देता है। वह किसी से कुछ माँगता नहीं, निरन्तर देने के स्वभाव बनायें रहता है। बसंत के दिन हम जीवन विद्या को सीखना आरम्भ करते हैं इसलिए विद्या के प्रतीकों का हमें सम्मान करना चाहिए, उनकी पूजा करनी चाहिए, जिसकी हम पूजा करते हैं, जनता की दृष्टि में वही श्रेष्ठ गिनी जाती है। विद्या, बुद्धि की प्रतीक सरस्वती हैं। सरस्वती देवी के एक हाथ में पुस्तक और दूसरे में वीणा होती है। ज्ञान प्राप्त करने के साथ साथ में उल्लास, स्फूर्ति, झंकार भी की आवश्यक है। वीणा के भजने से मन तरंगित होता है हमारे जीवन में विद्या के साथ साथ जीवन को सुन्दर व शोभायमान बनाने के लिए नई नई उमंगें पैदा हों।इस दिन हमें विद्वानों का सम्मान करना चाहिए। उन्हें सम्मान सूचक पद देने चाहिए ताकि साधारण व्यक्ति भी इस मार्ग की ओर अग्रसर हों, आम लोग उसी ओर चलते हैं जिसका विशेष प्रकार से सम्मान किया जाता है। चूँकि आज कल धनवानों की लोग कदर करते हैं इसलिए जनता की प्रवृत्ति अधिक धन प्राप्त करके सम्मान प्राप्त करने की है। इस प्रवृत्ति को हमें एक नई मोड़ देना है। हमारे सामने हर वर्ष यह शुभ अवसर आता है परन्तु हम उसे केवल मनोविनोद में ही समाप्त कर देते हैं। जनता के दृष्टिकोण को बदलने के लिये हमें विद्वानों का सम्मान विशेष धूमधाम के साथ करना चाहिए।बसंत का त्यौहार हमारे लिए पीले फूलों की जयमाला लिए खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जायेगी जो लोग उस दिन से पशुता से मनुष्यता, अज्ञानता से ज्ञान अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते हैं और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हें प्राप्त किया है, उनका सम्मान करते हैं, संसार में ज्ञान गंगा को बढ़ाने के लिए भागीरथ जैसा तप करने की प्रतिज्ञा करते हैं। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला ही श्रेष्ठ होता है।
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