आया बसंत
पतझड़ का अंत
मधु से कंत
ऋतु वसंत
नवल भू यौवन
खिले आकंठ
शाल पलाश
रसवंती कामिनी
महुआ गंध।
केसरी धूप
जीवन की गंध में
उड़ता मकरंद
कुहू के स्वर
उन्माती कोयलिया
गीत अनंग।
प्रीत पावनी
पिया हैं परदेशी
रूठा बसंत।
प्रिय बसंत
केसरिया शबाब
पीले गुलाब
सुशील कुमार शर्मा
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