सुशील शर्मा
भ्रमर धरा पर झूम कर बैठा फूलों पास।
कली खिली कचनार की फूले फूल पलाश।
टेसू दहका डाल पर महुआ खुशबू देय।
सरसों फूली खेत में पिया बलैयां लेय।
बागों में पुलकित कली मंद मंद मुस्काय।
ऋतू आई मधुमास की प्रीत खड़ी शरमाय।
पुरवाई गाती फिरे देखो राग बसंत।
जल्दी आओ बाग़ में भूल गए क्या कंत।
पीत वसन पहने धरा सरसों का परिधान।
अमवा बौरा कर खिले पिया अधर मुस्कान।
न जाने कब आयेगें पिया गए परदेश।
ऋतू बसंत आँगन खड़ो आया न सन्देश।
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