और कितने बंसत हूँ तुम्हें
अपने अँगों को महकाने के लि,।
टेसू के फूल लगे फिर से महकने
मादक अमराई लगी , फिर से बहकने
गांव के बगीचे में
गुल मोहर के नीचे
और कितने बंसत दूँ तुम्हें
प्रिय से अभिसार के लिए ।
सपनों के मधुवन में
बिखरे यादों के मोती
धानी प्रेम की चुनरिया
तेरी याद ओढ़ सोती
नदी के किनारों पर
शबनमी बहारों पर
और कितने बंसत दूँ तुम्हें
मेरे स्वप्न के संजोने के लिए ।
इन मुखरित गीतों में
तुम्ही समाये हो
मुरली की रागों में
तुम्ही सुर मिलाये हो
जिन्दगी की राहों में
इन मदहोश हवाओं में
और कितने बसंत दूँ, तुम्हे
मन मंदिर में आने के लिये।
सुशील कुमार शर्मा
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