*लोकतंत्र का अर्थ है, एक ऐसी जीवन-पद्धति जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं।”*
*बाबा साहब अम्बेडकर*
*"लोकतंत्र, अपनी महंगी और समय बर्बाद करने वाली खूबियों के साथ, सिर्फ भ्रमित करने के एक तरीका भर है जिस से जनता को विश्वास दिलाया जाता है कि वह ही शासक है जबकि वास्तविक सत्ता कुछ गिने-चुने लोगों के हाथ में ही होती है।*"
*जॉर्ज बर्नार्ड शॉ*
उपरोक्त दोनों कथन एक दूसरे के विरूद्ध होने के बाद भी लोकतंत्र की व्यापकता को इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं।लोकतंत्र शब्द राजनीतिक शब्दावली के सर्वाधिक इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में से एक है।यह महत्वपूर्ण अवधारणा है जो अपनी बहुआयामी अर्थों के कारण समाज और मनुष्य के जीवन के बहुत से सिद्धान्तों को प्रभावित करता है।
लोकतंत्र’ शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘डेमोक्रेसी’ (Democracy) है, जिसकी उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द ‘डेमोस’ से हुई है | डेमोस का अर्थ होता है – ‘जन साधारण’ और इस शब्द में ‘क्रेसी’ शब्द जोड़ा गया है, जिसका अर्थ ‘शासन’ होता है।
सरटोरी ने अपनी पुस्तक ’डेमोक्रेटिक थ्योरी’ में लिखा है कि राजनीतिक लोकतंत्र एक तरीका या प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रतियोगी संघर्ष से सत्ता प्राप्ति की जाती है और कुछ लोग इस सत्ता को नेतृत्व प्रदान करते हैं। सरटोरी के अनुसार लोकतंत्र काफी कठिन शासन है - इतना कठिन कि केवल विशेषज्ञ लोग ही इसे भीड़तंत्र से बचा सकते हैं। अत: इसकी प्रक्रिया को मजबूत बनाना आवश्यक है। (सरटोरी: 1985: 3-10) हंटिगटन के अनुसार लोकतंर को तीन आधारों पर समझा जा सकता है – (i) शासकीय सत्ता का एक साधन, (ii) सरकार के उद्देश्य, (iii) सरकार को चुनने की प्रक्रिया के रूप में। हंटिगटन के अनुसार लोकतंत्र की इस प्रक्रिया के अंतर्गत स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा आवधिक चुनाव के द्वारा “सबसे शक्तिशाली सामूहिक निर्णय-निर्माता” चुने जाते हैं, और सभी व्यस्क लोगों को सहभागिता प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिये नागरिकों को स्वतंत्रताएँ, तथा कुछ अधिकार भी प्रदान किये जाते हैं।
*भारत में लोकतंत्र का प्राचीन इतिहास* -
विश्व के विभिन्न राज्यों में राजतंत्र, श्रेणीतंत्र, अधिनायकतंत्र व
लोकतंत्र आदि शासन प्रणालियाँ प्रचलित रही हैं।´´ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करें तो भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का आरम्भ पूर्व वैदिक काल से ही हो गया था।प्राचीन काल मे भारत में सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था विद्यमान थी। इसके साक्ष्य हमें प्राचीन साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों से प्राप्त होते हैं। विदेशी यात्रियों एवं विद्वानों के वर्णन में भी इस बात के प्रमाण हैं।
वर्तमान संसद की तरह ही प्राचीन समय में परिषदों का निर्माण किया गया था। जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलता-जुलता था। गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था। इसके सदस्यों की संख्या विशाल थी। उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7707 सदस्य थे। वहीं यौधेय की केन्द्रीय परिषद के 5000 सदस्य थे। वर्तमान संसदीय सत्र की तरह ही परिषदों के अधिवेशन नियमित रूप से होते थे।प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था में आजकल की तरह ही शासक एवं शासन के अन्य पदाधिकारियों के लिए निर्वाचन प्रणाली थी। योग्यता एवं गुणों के आधार पर इनके चुनाव की प्रक्रिया आज के दौर से थोड़ी भिन्न जरूर थी। सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था। ऋग्वेद तथा कौटिल्य साहित्य ने चुनाव पद्धति की पुष्टि की है परंतु उन्होंने वोट देने के अधिकार पर रोशनी नहीं डाली है।
*लोकतंत्र के उद्देश्य* -
(i) राज्य की संस्थाएँ और संरचनाएँ राजनीतिक प्रतियोगिता को बढ़ावा देना , राजनीतिक शक्ति का आधार खुली प्रतियोगिता हो, व्यक्तियों के राजनीतिक अधिकारों को संरक्षण मिले।
(ii) व्यक्तियों तथा विविध समूहों की व्यवस्था में अर्थपूर्ण भागीदारी।
(iii) राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत कानून का शासन, नागरिक स्वतंत्रताएँ, नागरिक अधिकार, आदि की गारंटी उपलब्ध करायी जाए।
(iv) नीति-निर्माण संस्थाओं में खुली भर्ती की प्रक्रिया को अपनाना।
(v) राजनीतिक सहभागिता के लिये नियमन किया जाए।
(vi) राजनीतिक सत्ता के लिये प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया जाए।
*भारतीय लोकतंत्र के उद्देश्य* –
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक देश है। भारत में लोकतंत्र तब आया जब 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। यह संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।संविधान में लोकतंत्र की सम्पूर्ण व्याख्या की गई है। लोकतंत्र के कुछ मौलिक उद्देश्य एवम विशेषताएं निम्न हैं।
(1) जनता की सम्पूर्ण और सर्वोच्चता भागीदारी (2) उत्तरदायी सरकार (3) जनता के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की हिफाजत सरकार का कर्त्तव्य होना
(4) सीमित तथा संविधानिक सरकार (5) भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने, सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का वादा। (6) निष्पक्ष तथा आवधिक चुनाव (7) वयस्क मताधिकार (8)सरकार के निर्णयों में सलाह, दबाव तथा जनमत के द्वारा जनता का हिस्सा |(9)जनता के द्वारा चुनी हुई प्रतिनिधि सरकार |(10) निष्पक्ष न्यायालय |(11) कानून का शासन |(12) विभिन्न राजनीतिक दलों तथा दबाव समूहों की उपस्थिति (13 ) सरकार के हाथ में राजनीतिक शक्ति जनता की अमानत के रूप में
*भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियां* -
भारत विश्व की सबसे पुरानी सम्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद पिछले 69 वर्षों में भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है।
इन 69 सालों में भारत ने विश्व समुदाय के बीच एक आत्मनिर्भर, सक्षम और स्वाभिमानी देश के रूप में अपनी जगह बनाई है. सभी समस्याओं के बावजूद अपने लोकतंत्र के कारण वह तीसरी दुनिया के अन्य देशों के लिए एक मिसाल बना रहा है. उसकी आर्थिक प्रगति और विकास दर भी अन्य विकासशील देशों के लिए प्रेरक तत्व बने हुए हैं |
हम दुनिया में एकमात्र राष्ट्र है जिसने हर वयस्क नागरिक को स्वतंत्रता पहले दिन से ही मतदान का अधिकार दिया है। अमेरिका जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़े लोकतंत्र है ने स्वतंत्रता के 150 से अधिक वर्षों बाद इस अधिकार को अपने नागरिकों को दिया। 560 छोटे रियासतों का भारत संघ में (विलय) | किसी भी एक देश में बोली जाने वाली भाषाओं की सबसे अधिक संख्या भारत में है करीब २९ भाषाएँ पूरे भारत में बोली जाती है। करीब 1650 बोलियां भारत के लोग बोते हैं। एक दलित द्वारा तैयार संविधान भारत में है। जातीय समूहों की सबसे अधिक संख्या भारत में है।दुनिया में सबसे ज्यादा निर्वाचित व्यक्तियों (एक लाख) की संख्या भारत में हैं , धन्यवाद पंचायती राज।निर्वाचित महिलाओं (पंचायतों, आदि) की संख्या सबसे अधिक।स्वदेशी परमाणु तकनीक विकसित की दुनिया का बहिष्कार झेला ।सबसे कम लागत की परमाणु ऊर्जा ($: 1700 किलोवाट प्रति) उत्पन्न करने वाला देश भारत है ।थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा विकसित करने वाला एकमात्र देश भारत है ।अंतरिक्ष में वाणिज्यिक उपग्रहों सबसे काम कीमत में लांच करने वाला देश भारत है। परमाणु पनडुब्बी लांच करनेवाले पांच देशों में से एक भारत है। चांद और मंगल पर मानव रहित मिशन भेजने वाले पांच देशों में से एक भारत है। एल्यूमीनियम सीमेंट उर्वरक एवं इस्पात का सबसे कम लागत निर्माता भारत है ।सबसे बड़ा तांबा स्मेल्टर।वायरलेस टेलीफोनी का सबसे कम लागत वितरण भारत में है ।सबसे तेजी से बढ़ते दूरसंचार बाजार। दुनिया के सबसे कम लागत सुपर कंप्यूटर।निम्नतम लागत वाली कार (नैनो)।दुनिया के दो पहिया वाहनों का सबसे बड़ा उत्पादक।सबसे कम लागत उच्च गुणवत्ता वाले नेत्र शल्य चिकित्सा।दैनिक मोतियाबिंद आपरेशन के रिकार्ड संख्या, ब्रिटेन के एक प्रतिशत कीमत पर।सबसे बड़ा तेल रिफाइनरी की क्षमता लगभग 70m टन।सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश (100 मीटर टन)।मक्खन का सबसे बड़ा उत्पादक | विश्व के सबसे बड़ा दुग्ध सहकारी संस्था (2.6 लाख सदस्य) भारत में ।दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता।चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। तीसरा कपास का सबसे बड़ा उत्पादक।सोने का सबसे बड़ा आयातक (700 टन)। सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।संसाधित सभी हीरे का 43. 90 प्रतिशत भारत उत्पादक है ।तीसरा (लेनदेन की संख्या से) के सबसे बड़े शेयर बाजार।डाकघरों का सबसे बड़ा संख्या (1.5 लाख । बैंक खाता धारकों की संख्या सबसे अधिक।कृषि भूखंड धारकों (100 करोड़) की संख्या सबसे अधिक।गैर निवासियों (52 अरब $) से सबसे बड़ा आवक विप्रेषण रिसीवर।सबसे बड़ा अंतर-देश प्रेषण।दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है।सबसे बड़ा एकल नियोक्ता भारतीय रेल (1.5 करोड़ डॉलर)। दैनिक रेल यात्रियों की संख्या सबसे ज्यादा। विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हवाई अड्डा (दिल्ली)।भारत की मिड-डे मील योजना दुनिया का सबसे बड़ा भोजन कार्यक्रम है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम दुनिया में सबसे बड़ा रोजगार देने वाला कार्यक्रम है। भारत की सामरिक क्षमता में एक और शक्ति इस वर्ष जोड़ी गई जिसका नाम है- अरिहंत। भारत इस परियोजना पर करीब दो दशक से काम कर रहा है। भारतीय वैज्ञानिको के अथक प्रयासों से भारत की नौसेना में इस अत्याधुनिक शस्त्र को शामिल किया गया जिसके जरिये आज भारत हर तरह की सामरिक चुनौती का सामना करने में सक्षम है।स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव एक अच्छे लोकतंत्र की स्थापना की कुंजी है। जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री एम एन वेंकटचलैया पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं, "एक अदना सा व्यक्ति एक अदने से बूथ तक चलने और एक अदने से कागज़ के टुकड़े पर पेंसिल से एक अदना सा निशान बनाकर राजनीतिक क्रांति का अग्रदूत साबित हो सकता है। भारत अपनी चुनाव प्रणाली पर निश्चित रूप से गर्व कर सकता है जिसने इस क्षेत्र के कई अन्य देशों के विपरीत सत्ता के समयबद्ध और निर्बाध हस्तांतरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। "
आजादी के 70 साल बाद और भारत की एक अरब से अधिक जनसँख्या होने के बाद भी यह दावा करना मुश्किल है कि भारत सचमुच एक लोकतांत्रिक देश है। यह सच है कि इसने हर क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, फिर भी जब भूख से बेहाल आंसुओं से लबालब चेहरे नव धनाढ्यों की ओर घूरते हैं तो हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हम आज कहाँ खड़े हैं। जनसँख्या के एक बड़ा हिस्सा आज भी विकास की मुख्य धारा से बाहर है। रामचंद्र गुहा अपनी पुस्तक इण्डिया आफ्टर गाँधी (पिकाडोर, 2007) में जवाब देते हैं: "जवाब है फिप्टी-फिप्टी (50:50)। " जब चुनाव कराने और आंदोलन व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति की बात आती है, तब यह बात लागू होती है। लेकिन जब राजनेताओं और राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली की बात आती है तो ये लागू नहीं होती है। लोकतंत्र की खामियां, विशेष रूप से इसके संचालन में, "अनिवार्य रूप से इसकी संरचना में नहीं पायी जाती हैं। " अक्सर ये खामियां इसे को चलाने वाले लोगों के चरित्र और कार्यप्रणाली में होती हैं।
इतनी उपलब्धियों के बाद भी स्वतंत्रता हासिल करने पर जिन उच्च आदर्शों की स्थापना हमें इस देश व समाज में करनी चाहिए थी, हम आज ठीक उनकी विपरीत दिशा में जा रहे हैं और भ्रष्टाचार, दहेज, मानवीय घृणा, हिंसा, अश्लीलता और कामुकता जैसे कि हमारी राष्ट्रीय विशेषतायें बनती जा रही हैं ।समाज मे ग्रामों से नगरों की ओर पलायन की तथा एकल परिवारों की स्थापना की प्रवृत्ति पनप रही है इसके कारण संयुक्त परिवारों का विघटन प्रारम्भ हुआ उसके कारण सामाजिक मूल्यों को भीषण क्षति पहुँच रही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि संयुक्त परिवारों को तोड़ कर हम सामाजिक अनुशासन से निरन्तर उछूंखलता और उद्दंडता की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। इन 69 वर्षों में हमने सामान्य लोकतन्त्रीय आचरण भी नहीं सीखा है।
देश में बदलाव की बयार तो बह रही है। महसूस कौन कितना कर पा रहा है, यह दीगर बात है। सूचना प्रवाह के इस युग में समूची दुनिया से जुड चुके है , भारत देश में हर जगह, हर वर्ग एवं स्तर बदलाव की अनुभूति कर रही है।लेकिन इस बदलाव की बहार के बीच यह बुनियादी सवाल उठाये जाने की जरूरत है कि हम जिस सम्प्रभु, समाजवादी जनवादी (लोकतान्त्रिक) गणराज्य में जी रहे हैं वह सही दिशा में अग्रसर है।
सुशील कुमार शर्मा
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