सुशील शर्मा
सुदूर आदिवासी गांव में ।
घने हरे पेड़ो की छांव में ।
नंगे बदन चीथड़े लपेटे ।
विवशताओं को समेटे।
जर्जर माताओं की गोद ।
भूख ही जिनका आमोद।
मन के है जो सच्चे।
यही तो है भारत के बच्चे।
नब्बे वर्ष की उम्र कांपती उंगलियां।
उम्र का बोझ ढोती पिंडलियाँ।
राशन की लाइन में लगा वृद्ध।
यही है भारत के सपने समृद्ध।
पोपले मुँह का मुस्काता चित्र।
यही तो है असली भारत का पुत्र।
दुर्गम दुरूह पहाड़ काट ।
बनाता सड़क सपाट ।
पसीना बहाकर भूखे पेट।
सोता पत्थरों पे लेट ।
करता भारत निर्माण ।
अनंत कष्टों का परिमाण।
असंख्य अनाम सत्र ।
वही तो है भारत का पुत्र।
जो बनते हैं पहला नीव का पत्थर।
कर्म क्षेत्र में कर्मठ डटकर।
भारत माता की तुमुल ध्वनि पर।
दुखी व्याकुल किन्तु समर्पित।
जो करते हैं देश को सर्वस्व अर्पित।
जो हँसते हुए मृत्यु सैया पर लेटे।
सच में वही हैं भारत के बेटे।
खेतों की छाती को चीर
अन्न उपजाता है ये वीर।
पसीना बहाता है अमूल्य।
फसल का न पाता उचित मूल्य।
कर्ज के फंदे में फंसा अन्नदाता।
मजबूरी में फांसी से लटक जाता।
बेबस असहाय है ये भूमिपुत्र।
यही तो है असल में भारत पुत्र।
प्रयाण तूल ,कर तुमुल निनाद
लोह भुज ,कोटि विपुल शंख नाद।
जीवन सहे असंख्य कष्ट।
कुछ हँसते कुछ रहते रुष्ट।
फिर भी कहें जय माँ भारती ।
हर कंठ निकले राष्ट्र आरती ।
जिनके लिए सर्वोपरि है राष्ट्र हित।
वे ही तो हैं असल में भारत सुत।
माइनस पचपन डिग्री की ठण्ड
सहन करते जो अखंड।
देश की रक्षा करे सीना तान ।
कठिन विपुल वितान ।
नींद ,उम्र सुख निछावर।
मौत के संग ली भांवर।
शत्रु दमन साहस मित्र ।
वही तो है भारत का पुत्र।
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