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भारतीय परिदृश्य में मानवाधिकार

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।सभी व्यक्तियों को गरिमा और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है। वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर को प्राप्त करने का अधिकार है जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य, कल्याण और विकास के लिए आवश्यक है। मानव अधिकारों में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के समक्ष समानता का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि नागरिक और राजनैतिक अधिकार भी सम्मिलित हैं।मानव अधिकार मानव के विशेष अस्‍तित्‍व के कारण उनसे सम्‍बन्‍धित है इसलिये ये जन्‍म से ही प्राप्‍त हैं और इसकी प्राप्‍ति में जाति, लिंग, धर्म, भाषा, रंग तथा राष्‍ट्रीयता बाधक नहीं होती। मानव अधिकार को ‘मूलाधिकार' आधारभूत अधिकार अन्‍तर्निहित अधिकार तथा नैसर्गिक अधिकार भी कहा जाता है। ‘‘मानव अधिकार की कोई सर्वमान्‍य विश्‍वव्‍यापी परिभाषा नहीं है। इसलिये राष्‍ट्र इसकी परिभाषा अपने सुविधानुसार देते हैं। विश्‍व के विकसित देश मानवाधिकार की परिभाषा को केवल मनुष्‍य के राजनीतिक तथा नागरिक अधिकारों को भी शामिल रखते हैं।'' मानवाधिकार को कानून के माध्‍यम से स्‍थापित किया जा सकता है। इसका विस्‍तृत फलक होता है, जिसमें नागरिक, राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्‍कृतिक अधिकार भी आते हैं।
ऐतिहासिक परिपेक्ष्य
अशोक के आदेश पत्र आदि अनेकों प्राचीन दस्तावेजों एवं विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में अनेक ऐसी अवधारणाएं हैं जिन्हें मानवाधिकार के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। आधुनिक मानवाधिकार कानून और इसकी अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाओं का सम्बन्ध समसामयिक इतिहास से है।
1. ‘ द ट्वेल्व आर्टिकल्स ऑफ़ द ब्लैक फारेस्ट (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का प्रथम दस्तावेज माना जाता है जो कि जर्मनी के किसानों की स्वाबियन संघ के समक्ष उठायी गयी मांगों का ही एक हिस्सा है।
2.यूनाइटेड किंगडम में 1628 ई0 पेटिशन ऑफ़ राइट्स में मानवीय अधिकारों का उल्लेख किया गया ।
3. वर्ष 1690 ई0 में जॉन लॉक ने भी इन अधिकारों का अपनी पुस्तक ” स्टेट्स ऑफ़ नेचर ” में वर्णन किया।
4.वर्ष 1791 ई0 में ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स ने यूनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्यवाहियों को अवैध ठहराया।
5. वर्ष 1776 ई0 में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद इन अधिकारों को अमेरिकी संविधान में स्थान दिया गया।
6.वर्ष 1789 ई0 में फ्रांस क्रांति के उपरांत फ्रांस में भी मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा को अभिग्रहित किया गया।
संविधान में उल्लेख
आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए , अपने विकास के लिए और आगे बढ़ने के लिए कुछ हालत ऐसे चाहिए जिससे की उनके रास्ते में कोई व्यवधान न आये। पूरे विश्व में इस बात को अनुभव किया गया है और इसी लिए मानवीय मूल्यों की अवहेलना होने पर वे सक्रिय हो जाते हैं। इसके लिए हमारे संविधान में भी उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21,23,24,39,43,45 देश में मानवाधिकारों की रक्षा करने के सुनिश्चित हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि इस दिशा में आयोग के अतिरिक्त कई एनजीओ भी काम कर रहे हैं और साथ ही कुछ समाजसेवी लोग भी इस दिशा में अकेले ही अपनी मुहिम चला रहे हैं।
10 दिसम्बर को पूरी दुनिया में “मानवाधिकार दिवस” के रूप में मनाया जाता है। “10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा को अंगीकृत किया गया। मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा में प्रस्तावना एवं 30 अनुच्छेद हैं।” इस विश्वव्यापी घोषणा की प्रस्तावना में कहा गया है कि “मानव समुदाय के सभी सदस्यों के गौरवपूर्ण जीवन एवं समानता के अधिकार विश्वव्यापी स्वतंत्रता, न्याय एवं शान्ति के अधिकार केलिए है, जहाँ पुरुष एवं महिला अच्छे सामाजिक विकास के साथ अधिक से अधिक स्वतंत्रता प्राप्त कर सके।” अर्थात अनुच्छेद 1 से लेकर अनुच्छेद 20 तक व्यक्ति के नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों की व्याख्या की गई है तथा अनुच्छेद 21 से 30 तक व्यक्ति के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक अधिकारों को सम्मिलित किया गया है।
मानव अधिकार
1. -मूल (fundamental), 2. -आधारभूत (Basic), 3-अंतर्निहित(Inherent), 4-प्राक्रतिक (Natural), 5-जन्म सिद्ध अधिकार(Birth Rights)
संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार
भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़े तथ्‍य इस प्रकार हैं:
1. इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है.
2. इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) है.
3. इसमें संशोधन हो सकता है और राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यकितिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है.
4. मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1979 ई०) के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 से अनुच्छेद 19f) को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अन्तगर्त क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है.

 

भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मूल अधिकार प्राप्त हैं:
1. समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)


नागरिकों के मौलिक कर्तव्य
1976 में सरकार द्वारा गठित स्वर्णसिंह समिति की सिफारिशों पर, 42वें संशोधन द्वारा संविधान में जोड़े गए थे। मूल रूप से संख्या में दस, मौलिक कर्तव्यों की संख्या 2002 में 86वें संशोधन द्वारा ग्यारह तक बढ़ाई गई थी,
1. प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें.
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे.
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे.
4. देश की रक्षा करे.
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे.
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे.
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे.
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे.
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे.
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे.
11. माता-पिता या संरक्षक द्वार 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन)
नागरिक इन कर्तव्यों का पालन करने के लिए संविधान द्वारा नैतिक रूप से बाध्य हैं।

 

मानव के द्वारा मानव के दर्द को पहचानने और महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं होती है। अगर हमारे मन में मानवता है ही नहीं तो फिर हम साल में पचासों दिन ये मानवाधिकार का झंडा उठा कर घूमते रहें कुछ भी नहीं किया जा सकता है। ये तो वो जज्बा है जो हर इंसान के दिल में हमेशा ही बना रहता है बशर्ते की वह इंसान संवेदनशील हो। क्या हमारी संवेदनाएं मर चुकी है अगर नहीं तो फिर चलें हम अपने से ही तुलना शुरू करते हैं कि हम मानवाधिकार को कितना मानते हैं? क्या हम अपने साथ और अपने घर में रहने वाले लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं ?
सामान्य रूप से मानवाधिकारों को देखा जाय तो मानव जीवन में भोजन पाने का अधिकार , शिक्षा का अधिकार , बाल शोषण , उत्पीडन पर अंकुश , महिलाओं के लिए घरेलु हिंसा से सुरक्षा, उसके शारीरिक शोषण पर अंकुश , प्रवास का अधिकार , धार्मिक हिंसा से रक्षा आदि को लेकर बहुत सारे कानून बनाये गए हैं जिन्हें मानवाधिकार की श्रेणी में रखा गया है।ये अधिकार सभी अन्योन्याश्रित और अविभाज्य है।
मानव अधिकार का ढांचा
मानव अधिकारों की शक्ति का सही उपयोग करने के लिए उनकी पर्याप्त जानकारी एवं आम लोंगो तक उनकी पहुँच अति आवश्यक है। इसके लिए एक ढांचा होना जरूरी है। मानव अधिकार तंत्र के ढांचे में निम्न तत्व होते है। 1. विचारधारा 2. प्रकार्य 3. मूल अधिकार 4. हितग्राही 5. अभिकर्ता 6. संस्थान 7. विधियां
मानव अधिकारों का मूल उदेश्य मानव की गरिमा को सुरक्षा प्रदान करना है। अधिकारों की विचार धारा पर मूल सहमति है की हर देश एवं क्षेत्र के निवासी को एक गरिमा मय जीवन जीने को मिले उसके मूल जीवन जीने के अधिकारों को सुरक्षा प्राप्त हो। मानव अधिकारों के तीन स्तर निर्मित किये गए हैं।
1. अंतर्राष्ट्रीय 2. क्षेत्रीय 3. राष्ट्रीय
इन तीनो स्तरों को विभिन्न संधियों से जोड़ कर प्रभावशाली तरीके से मानव अधिकारों की पहचान की गई है। मानव अधिकारों से सम्बंधित सबसे महत्वपूर्ण कार्य सर्वसम्मति से मानव अधिकारों पर एक राय बनाना है। विभिन्न वर्गों जिनमे महिला ,अल्पसंख्यक ,अप्रवासी ,शोषित एवं अन्य वर्ग जिनके अधिकारों का हनन होता है पर रायशुमारी कर एकमत बनाने का प्रयत्न करना है। इसके अलावा नियमो का संदर्शन ,अधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा ,अधिकारों की गतिशीलता एवं अधिकारों की सुरक्षा मानव अधिकार की सुरक्षा करने वाले संस्थानों एवं अभिकर्ताओं का प्रमुख उदेश्य है।
किसी भी देश के विकास के लिए उस देश में सामाजिक विकास आवश्यक होता है एवं सामाजिक विकास के लिए सामाजिक समस्याओं जैसे गरीबी ,बेरोजगारी एवं सामाजिक बहिष्कार जैसे समस्यायों पर ध्यान देना जरूरी है। शासन का काम है की वह समाज में अन्तर्निहित असुरक्षा की भावनाओं को मिटने के लिए समाज में व्याप्त आतंरिक कुरियियों एवं तंत्र में व्याप्त बुराइयों को मिटाये। इसके लिए व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक जरूरतें एवं परिवार , समाज एवं समूहों की जरूरतों पर ध्यान दिया जाए। मानव अधिकारों से जुड़े गरीबी ,भुखमरी ,बेरोजगारी,कुपोषण,नशा,सुनियोजित अपराध भ्रष्टाचार ,विदेशी अतिक्रमण,शस्त्रों की तस्करी आतंकवाद ,असहिष्णुता ,रंगभेद ,धार्मिक कट्टरता आदि बुराइयों का योजना बद्ध तरीके से निर्मूलन जरूरी है।
आयोग का कार्य
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 के अन्तर्गत मानव अधिकार आयोग के द्वारा निम्नलिखित कार्य किये जाएंगें-
1. आयोग अपनी ओर से स्वयं अथवा पीड़ि़त द्वारा अथवा उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रार्थना पत्र देकर शिकायत करने पर कि, किसी शासकीय सेवक द्वारा मानव अधिकारों का हनन किया गया है अथवा ऐसा करने के लिये उकसाया गया है अथवा उसने ऐसा हनन रोकने की उपेक्षा किया है, तो ऐसी शिकायतों की जांच करना।
2. किसी न्यायालय में विचारधीन मानव अधिकारों के हनन के मामले में संबंधित न्यायालय के अनुमोदन से ऐसे मामले की कार्यवाही में भाग लेगा।
3. राज्य सरकार को सूचित करके, किसी जेल अथवा राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन किसी ऐसे संस्थान का जहाँ लोगों को चिकित्सा सुधार अथवा सुरक्षा हेतु ठहराया जाता है वहां के निवासियों की आवासीय दशओं का अध्ययन करने के लिये निरीक्षण करना और उनके बारें में अपने सुझाव देना।
4. संविधान तथा अन्य किसी कानून द्वारा मानव अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रदत्त रक्षा उपायों की समीक्षा करना और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के संबंध में सुझाव देना।
5. आतंकवाद एवं ऐसे सारे क्रिया-कलापों की समीक्षा करना, जो मानव अधिकारों का उपभोग करने में बाधा डालते हैं तथा उनके निवारण के लिए उपाय सुझाना।
6. मानव अधिकारों से संबंधित अनुसंधान कार्य को अपने हाथ में लेना एवं उसे बढ़ावा देना।
7. समाज के विभिन्न वर्गों में मानव अधिकार संबंधी शिक्षा का प्रसार करना तथा प्रकाशनों, संचार माध्यमों एवं संगोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों द्वारा मानव अधिकार संबंधी रक्षा उपायों के प्रति जागरूकता लाना।
8. मानव अधिकारों की रक्षा करने या करवाने के क्षेत्र में क्रियाशील गैर सरकारी संगठनों तथा संस्थाओं के प्रयासों को प्रोत्साहन देना।
9. मानव अधिकारों की समुन्नति के लिये आवष्यक समझे गये अन्य कार्य करना।
10. मानव अधिकार सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार है, जो कुछ भी हमारी राष्ट्रीयता, निवास की जगह, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा, या किसी अन्य स्थिति. हम सभी बिना किसी भेदभाव के समान रूप से कर रहे हैं हमारे मानव अधिकारों के लिए हकदार है ।
आयोग की शक्तियां
शिकायत की जांच करते हुए आयोग ने सिविल प्रक्रिया 1908 संहिता के तहत एक सूट के परीक्षण के मामले में एक सिविल कोर्ट के सभी अधिकार के साथ निहित है. विशेष रूप से, यह करने की शक्ति है -
1. गवाहों को बुला कर शपथ पत्र लेकर जाँच शुरू करना।
2. आदेश की खोज और किसी भी दस्तावेज़ का उत्पादन;
3. हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त;करना
4. किसी भी अदालत या कार्यालय से कोई सार्वजनिक रिकार्ड की मांग, और
5. गवाहों या दस्तावेजों की जांच के लिए आयोग आदेश जारी कर सकता हैं।
मानव आधिकार आयोग द्वारा केवल उन्हीं शिकायतों पर संज्ञान लिया जाता है जिनमें लोक सेवक मानव अधिकारों के उल्लंघन पर कार्यवाही नहीं करते। यानी आरोपी की परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मदद करते हैं। ऐसी शिकायतों पर आयोग निर्देश या सिफारिश करता है।
आयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच के लिए महानिरीक्षक रैंक के पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में जाँच करवा सकता है या वह एक केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या जांच एजेंसी के कार्यालय का उपयोग करने के लिए भी आयोग कह सकता है। जांच के काम में गैर सरकारी संगठनों को भी आयोग संबद्ध कर सकता हैं।
आयोग मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जांच करते हुए निर्धारित समय के भीतर उन्हें केन्द्र सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी या अधीनस्थ संगठन से जानकारी या रिपोर्ट के लिए कह सकता हैं। जानकारी या रिपोर्ट निर्धारित समय के भीतर प्राप्त नहीं है, तो आयोग अपने दम पर शिकायत की जांच करने के लिए आगे बढ़ सकता है।
आयोग की कार्य प्रणाली
1.शिकायत भेजने के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है, शिकायत साधारण कागज पर लिखकर भेजी जा सकती है।
2.आयोग किसी विशिष्ट मामले में अन्वेषण कार्य के लिए उपयुक्त संख्या में अन्वेषक या पर्यवेक्षक नियुक्त कर सकता है।
3.आयोग व्यापक लोक हित के मामलों में अनुशंसा करने के पूर्व विशेषज्ञों की समिति गठित कर सुझाव भी ले सकता है।
4.शिकायत भेजने के लिए आयोग द्वारा हाल ही में ई-मेल के माध्यम से भी नई सुविधा शुरू की गयी है। इसके लिए ऑनलाइन के किसी भी सेंटर से शिकायत भेजी जा सकती है।
5.आयोग द्वारा घटनाएं घटित होने के एक साल बाद की जाने वाली शिकायतो पर कार्यवाही नहीं की जाती ।
6.आयोग द्वारा किसी अन्य न्यायालय या आयोग के समक्ष विचाराधीन प्रकरण पर कार्यवाही नहीं की जाती ।
7.समाचार पत्रों में प्रकाशित व्यापक जनहित अथवा व्यक्तिगत मामलों में मानव अधिकार के हनन की खबरों पर भी संज्ञान लेकर आयोग द्वारा कार्यवाही की जाती है।

 

मानवीय गरिमा और आत्म सम्मान की घातक होने के कारण गरीबी मानव- अधिकारों के हनन् का सबसे बड़ा कारण है। जहाँ भूख है, वहाँ शान्ति नहीं हो सकती। अतः गरीबी को खत्म कर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराये बिना मानव- अधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित सभी विकासशील देशों में जनसंख्या का 1/5 भाग रात को भूखा सोता है, 1/4 को पीने के पानी सहित मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं तथा कुल जनसंख्या का 1/3 भीषण गरीबी का जीवन जी रहे हैं। इंडिया टुडे (26.सितंबर.2007) की एक रिपोर्ट के अनुसार 1 अरब से अधिक की भारतीय जनसंख्या में से 30.1 करोड़ गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्य भी इसके अपवाद नहीं हैं। दशकों से इन राज्यों में आर्थिक विकास दर मंद रही है, जिससे बेरोजगारी बढ़ी है ,मानवीय शक्ति की बरबादी हुई और उग्रवादी समूहों में भर्तियाँ बढ़ी। पश्चिम बंगाल का नंदीग्राम मामला हो, अथवा उड़ीसा के गाँवों में भूख से त्रस्त किसानों द्वारा आत्महत्या के मामले, हमें यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा है कि नई सामाजिक व्यवस्था निर्मित किए बिना भारत की बहुसंख्यक जनता के लिए मौलिक अधिकारों का कोई अर्थ ही नहीं है।

 

 

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