Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ब्रज की रज पर दोहे

 

सुशील शर्मा

 

 

ब्रज रज की महिमा अमर ब्रज रस की है खान।
ब्रज रज माथे पर चढ़े,ब्रज है स्वर्ग समान।

 

भोली भाली राधिका भोले कृष्ण कुमार।
कुंज गलिन खेलत फिरें ब्रज रज चरण पखार।

 

ब्रज की रज चंदन बनी, माटी बनी अबीर।
कृष्ण प्रेम रंग घोल के लिपटे सब ब्रज वीर।

 

ब्रज की रज भक्ति बनी, ब्रज है कान्हा रूप।
कण कण में माधव बसे कृष्ण समान स्वरूप।

 

राधा ऐसी बावरी कृष्ण चरण की आस।
छलिया मन ही ले गयो अब किस पर विश्वास।

 

ब्रज की रज मखमल बनी कृष्ण भक्ति का राग।
गिरीराज की परिक्रमा कृष्ण चरण अनुराग

 

वंशीवट यमुना बहें राधा संग ब्रजधाम।
कृष्ण नाम की लहरियाँ निकलें आठों याम।

 

गोकुल की गलियां भलीं कृष्ण चरणों की थाप।
अपने माथे पर लगा धन्य भाग भईं आप।

 

ब्रज की रज माथे लगा रटे कन्हाई नाम।
जब शरीर प्राणन तजे मिले कृष्ण का धाम।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ