*कुंडलियां-*
चिंतन ऐसा कीजिये ,मन में रहे उमंग।
जीवन दशा सुधारिये ,मन सद्गुण के संग।
मन सद्गुण के संग ,लगन अंदर हो ऐसी।
जीवन बने पतंग ,डोर सद्गुण के जैसी।
कह सुशील कविराय ,मथो तुम ऐसा मंथन।
जीवन हो नवनीत ,मथानी जैसा चिंतन।
जीवन के निर्माण में ,सद्गुण बनें विशिष्ट।
संस्कार गर न मिलें ,बालक बनें अशिष्ट।
बालक बनें अशिष्ट,आचरण आती लघुता।
जीवन हो प्रतिकूल ,बढे मन अंदर पशुता।
कह सुशील कविराय ,संयमित ऐसा हो मन।
सुन्दर सुघड़ विचार ,नियंत्रित होता जीवन।
सुशील कुमार शर्मा
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