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दाना दुःख है मुझे

 

सुशील शर्मा

 

 

प्रश्नों पर प्रश्नचिन्ह।
उत्तरो पर पहरे हैं।
देश मेरा आगे बढ़ रहा है।
दाना मांझी गिड़गिड़ा रहाहै।
अस्पताल के भेड़िये लगा रहे हैं ठहाका।
बेटी माँ की लाश के पास बैठी रो रही है।
अमंग देई की लाश कैसे जायेगी साठ मील दूर।
दाना के पास जेब में नहीं है फूटी कौड़ी।
लाश को कपडे में लपेट कर ।
रस्सी से बांध कर कंधे पर उठा कर।
रोती बेटी का हाथ थाम कर।
चल पड़ता है दाना अपने गांव की ओर।
सभ्य समाज के ठेकेदार सड़क के दोनों ओर से।
देख रहे थे उस ठठरी को कांधे पर।
थोथी संवेदनाओं का लगा था अम्बार।
दाना का निस्पृह भावहीन चेहरा
तिल तिल कर खोल रहा था पोल।
मरती हुई मानवी संवेदनाओं की।
ख़बरों के ठेकेदार खींच रहे थे फोटो।
अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिये।
कोस रहे थे सोतीे सरकारों को।
दे रहे थे दुहाई सत्य बोलने की।
बारह किलो मीटर तक एक गरीब की लाश।
बनी रही थियेटर सब देख रहे थे तमाशा।
सरकारें सोती रहीं ।
मीडिया चिल्लाता रहा।
सभ्य समाज हँसता रहा।
बेटी रोती रही।
दाना कंधे पर लाश ढोता रहा।
मेरा देश आगे बढ़ता रहा।

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