Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दया नहीं अपनापन

 

सुशील शर्मा

 


मोहन तुम यहाँ क्या कर रहे हो कक्षा में क्यों नहीं आये "शिक्षक ने बगीचे
में एकांत में बैठे मोहन से पूछा।
मोहन सुबकने लगा शिक्षक ने बहुत प्यार से पूछा "बेटा मोहन क्या बात है? बोलो। "
"सर कक्षा के बच्चे मुझ पर दया करते हैं ,मुझे बेचारा कहते हैं। "मोहन ने
सुबकते हुए कहा।
मोहन 10 साल का कक्षा 5 वीं का छात्र था। बचपन में ही पोलियो के कारण
उसके दोनों पैर ख़राब हो गए थे। ट्राई साइकिल से विद्यालय आता है ,उसके
कक्षा के छात्र उससे सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करते हैं लेकिन उसके साथ
खेलते नहीं हैं।
मोहन को लगता है कि वे उसकी विकलांगता के कारण उस पर रहम और दया का
व्यवहार करते हैं। न कोई उससे मज़ाक करता है और नाही कोई उससे झगड़ता है।
सब की आँखों में उसके लिए दया है अपनापन नहीं। यही बात उसका मन दुखा गई।
शिक्षक ने मोहन को चुप कराते हुए कहा "मोहन मत रोओ में इस सम्बन्ध में
कक्षा में सभी से बात करूँगा। "
"सर मुझे मेरे दोस्तों से दया नहीं अपनापन चाहिए "मोहन ने सुबकते हुए कहा।


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ