सुशील शर्मा????
दीप जलें उनके मन में
जो मज़बूरी के मारे हों।
दीप जलें उनके मन में
जो व्यथित व्यतीत बेचारे हैं।
दीप जलें उनके मन में
जो लाचारी में जीते है।
दीप जलें उनके मन में
जो अपने ओठों को सीतें हैं।
दीप जलें उनके मन में
जो अँधियारे के सताएं हैं।
दीप जलें उनके मन में
जो कांटे पर सेज सजाएँ हैं।
दीप जलें उनके मन में
जहाँ भूख संग बेकारी है।
दीप जलें उनके मन में
जहाँ दुःख दर्द संग बीमारी है।
दीप जलें उस कोने में
जहाँ अबला सिसकी लेती है।
दीप जलें उस कोने में
जहाँ संघर्षो की खेती है।
दीप जलें उस कोने में
जहाँ बालक भूख से रोता है।
दीप जलें उस कोने में
जहाँ बचपन प्लेटें धोता है।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ मन पर तम का डेरा है।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ गहन अशांति अँधेरा है।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ क्रोध कपट कुचालें हों।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ कूटनीतिक भूचालें हों।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ अहंकार सिर चढ़ कर बोले।
दीप जलें उस आँगन में
जहाँ अज्ञान अशिक्षा संग डोले।
एक दीप जले उस मिट्टी पर
जहाँ पर बलिदानों की हवा चले।
एक दीप जले उस मिट्टी पर
जिस पर शहीद की चिता जले।
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