सुशील शर्मा
कम्पित दीप
तेज है झंझावात
हँसता रहा।
स्नेहिल दीप
सबको बांटता है
प्रेम प्रकाश।
उदास दीया
टिमटिमाता जला
बुझ न सका।
मन का दीया
जब तक न जले
अँधेरा पले।
हँसता दीया
दीवाली की बधाई
बाँटता फिरे।
दीया की बाती
शरीर संग आत्मा
जीवन ज्योति।
मन के कोने
आस का दीया जला
बुझ न पाए।
दीपक ज्योति
झिलमिल जलती
सुख की बाती।
प्रकाश पर्व
रोशन अंतर्मन
जलते दीये।
मेरा दीपक
दर पर तुम्हारे
बना पाहुना।
श्वेत धवल
दीपमाला उज्ज्वल
पर्व नवल।
दीपों की माला
खुशियों की कतारें
घर में उजाला।
मन मतंग
दीपमालाओं संग
उठी उमंग।
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