Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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देवी सप्तक

 

सुशील शर्मा

 

 

अखंडनी अरूपणी अमर्षणी अघोरनी।
प्रगलभनी प्रबोधनी प्रदर्मनि प्रखंडनी।
प्रमोदिनी प्रसादनी प्रदर्पनी प्रसारिणी।
सुधर्मनी सुवासिनी सुमुक्त रूप धारणी।
प्रवाहनी प्रगाढ़नि प्रदूपनी प्रमुक्तनी।
सुसुप्तनि सुरुपणी सुगल्भनी सुहासिनी।
दुर्ग दुर्ग दुर्गणी घोर घोर घातनी।
घमंडनी घुर्मणि घनीभूत घोरणी।
डमड्ड डमड्ड डाकिनी दुरूपणी दुर्मणि।
दुरूह रूह रोपणी खेचरी खरुपणी।
आदि आदि अनंतनी अनूप रूप रूपणी।
दर्प दर्प दर्पणी दिगंत गंत गामनी।
गर्ज गर्ज गर्जनी गगन स्वरुप दामनी।
शमन शमन शांतनी सर्व सिद्धि प्रदायनी

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