सुशील शर्मा
धन में धर्म
दया में उदारता
गर्व शामिल।
धन में भोग
द्वेष और अन्याय
मटियामेट।
धन सम्पति
ईश्वर का प्रकोप
करे अहित।
मान मर्यादा
धन है निरर्थक
गुण प्रमुख।
धन की भूख
लोभ मोह व तृष्णा
बुद्धि का नाश।
धन संग्रह
बुरे दिनों का साथी
रिश्तों का जोड़।
धन की गति
दान भोग व नाश
मन की तृप्ति।
हाथ में पैसा
अलादीन का जिन्न
काम न रुके।
धन के पंख
इधर से उधर
पल में फुर्र।
धन सम्पति
नारी जैसी चंचल
सबकी चाह।
संतोष धन
सब धन से श्रेष्ठ
चाहे कुबेर।
धन है दास
तिजोड़ी में संग्रह
बना मालिक।
विद्द्या और बुद्धि
सर्वोत्तम दौलत
कभी न रूठें।
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