शरीर धर्म
दीन दुखी की सेवा
सबका सुख।
मानव धर्म
अहं रहित सेवा
जीवन मूल।
धर्म का मूल
करुणा और दया
कर्म प्रेरणा।
धर्म की व्याख्या
मानवीय गौरव
सदाचरण।
धर्म का तत्व
ह्रदय ग्राह्य ज्ञान
बुद्धि से परे।
धर्म का आकार
सामाजिक समता
यश सम्मान।
धर्म से प्रेम
राष्ट्रीयता के भाव
स्व का अर्पण।
धर्म की बात
न हो प्रवचन
सत आचार।
सुशील कुमार शर्मा
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