Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ध्वनियां

 

रंभाती गायें
धूल उड़ाती नार
गोधूलि बेला।

 

गधे की रेंक
किसी की मत सुनो
अपनी फेंक।

 

आम के बौर
कोयल की कुहुक
साजन आये।

 

वन में मोर
खंजन का कुंजन
भंवरा मन।

 

पीहू पपीहा
साजन के आँगन
बाजे पैजन।

 

तोता रटंत
समझा कुछ नहीं
मनगढंत।

 

 

सुशील कुमार शर्मा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ