????????सुशील शर्मा????????
तुम्हारे मन में कुछ अव्यक्त सा
मचा रहा है हलचल।
कब तक रोकोगे इस अव्यक्त को
सच के धरातल पर आने से।
शायद सोचते होगे कि मन कोई
पानी तो नहीं जो छलक जायेगा।
लेकिन मन के अंदर से आती उस
रेशम सी रौशनी कैसे छुप सकती है
तुम्हारी आँखे चीख चीख कर
कह रहीं है कि तुम्हारे अंदर पल रहा है।
एक बीज मेरे सुकोमल प्रेम का।
तुम्हारी जुबाँ मना करती है।
लेकिन तुम्हारे नयन सब अव्यक्त
को व्यक्त कर देते है एक पल में।
तुम्हारे बस में नहीं है कि तुम
रोक सको इस उफनते दरिया को।
ये मन चुनौती दे रहा है तुम्हे
रोक सको तो रोक लो उस
अव्यक्त सुकोमल सच को
जो बाहर आना चाहता है।
जो कुछ बोलना चाहता है।
जो कुछ सुनना चाहता है।
प्रेम में डूबना चाहता है।
होली से रंगों सा उड़ना चाहता है।
मत रोको उसे उड़ने दो।
अंगूठी में हीरा जड़ने दो।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY