सुशील शर्मा
छोटी का बाप शराबी था।पूरा शरीर अल्कोहलिक हो चूका था।कई बार कोशिश की कि शराब छूट जाये नहीं छूट पाई ।
मरणासन्न स्थिति में डॉ ने कहा था थोड़ी थोड़ी शराब देते रहो नहीं तो इसके अंग बिलकुल नहीं चलेंगे।
बापू चीख रहा था *छोटी जरा सी देदे बेटा कहीं से ला दे।*
छोटी को बापू की चीत्कार सहन नहीं हुई।
लाज शर्म छोड़ कर शराब दुकान पर गई।बोली *एक क्वाटर दे*
काउंटर पर बैठा आदमी हड़बड़ा गया एक 15 साल की लड़की शराब मांग रही थी।
सब शराबियों की नजर उसकी देह को ललचाई निगाहों से देख रहीं थीं।
शर्म से गड़ी छोटी अपने बाप की जान बचाने के लिए उन गन्दी नज़रों का सामना करती हुई शराब लेकर घर आई और बापू को एक गिलास में शराब दी।
शराब पी कर बाप सो गया किन्तु मेरे मस्तिष्क में छोटी का कोमल निस्पृह चेहरा घूम रहा था।शराबी बाप की जान बचाने सिर्फ बेटी ही अपनी इज्जत दांव पर लगा सकती है और कोई नहीं।
उस समय मेरे जेहन में वह पेंटिंग घूम रही थी जिसमे जेल में अपने पिता की जान बचाने के लिए बेटी उस बूढ़े बाप को अपना स्तनपान कराती है।शायद छोटी भी उसी पेंटिंग का एक हिस्सा थी।
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