Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक कहानी तेरी मेरी

 

एक राज्य में सैनिकों की भर्ती खुली थी ,बेरोजगार युवक बहुत खुश थे। राजा ने ढिंढोरा पिटवाया "सैनिकों की भर्ती चालू आहे"। भर्ती वाले स्थान पर पता चला की पूर्ण सैनिकों की भर्ती नहीं है ,राजा के पास खजाने में पैसा नहीं है इसलिए कामचलाऊ सैनिकों की भर्ती हो रही है। सेवा शर्तों को देखा तो पांव तले जमीं खिसक गई। सेवा शर्तें इस तरह थीं।
1 आधी रोटी और आधा गिलास पानी मिलेगा जबकि पूर्ण सैनिकों को चार रोटी और चार गिलास पानी मिलता था।
2 हाफ पेंट और हाफ बनयान पहनने को मिलेगी जबकि पूर्ण सैनिकों को फुलपेंट और पूरी कमीज मिलती थी।
3 नीचे सोना पड़ेगा जबकि पूर्ण सैनिक गद्देदार बिस्तर पर सोते थे।
4 राज्य के आधीन नहीं बल्कि मुहल्लों के आधीन रहना पड़ेगा जबकि पूर्ण सैनिक राज्य कर्मी थे।
5 त्योहारों पर हलुआ नहीं मिलेगा सिर्फ पूर्ण सैनिकों को मिलने वाले हलुआ की सुगंध भर ले सकते हो।
6 ऐसे सैनिकों का नाम सैनिककर्मी होगा।
बेचारा बेरोजगार नौजवान मरता क्या न करता भर्ती हो गया। बेचारा हाड़ तोड़ मेहनत करने लगा पुराने सैनिक हर काम में उसे आगे कर देते लड़ाई में सबसे आगे के फ्रंट पर लगा दिया जाता ,आधी रोटी के लिए सबसे पीछे लाइन में खड़ा कर दिया जाता। समय गुजरता गया घरवाले परेशान ,बच्चे भूखे रह जाते ऐसे में उसका सब्र जबाब दे गया। ऐसे सभी सैनिक कर्मी एक हो कर बेहतर सुविधाओं की मांग करने लगे , राजा बहुत क्रूर एवं कूटनीतिज्ञ था बोला " शर्तों में जो लिखा है दे रहा हूँ करना हो तो करों नहीं तो भाग जाओ " बेचारा बेरोजगार नौजवान मरता क्या न करता घिसटता रहा। फिर सैनिक कर्मियों ने देखा की पूरी सुरक्षा हम कर रहे है और हमें मूर्ख बनाया जा रहा है अतःउन्होंने एक जुट होकर संघ बनाया तथा समय समय पर अपनी आवाज उठाई लेकिन राजा नहीं माना।
फिर राज्य और प्रजा में असंतोष फैला राजा बदल दिया गया। नया राजा आया बड़े वादे किये। उसने गाल फुला फुला कर सैनिक कर्मियों की दशा और दिशा सुधारने का ढिंढोरा पीटा।दरबारी उसके पास गए बोले "साहब इनको मुंह मत लगाओ इनकी तो आदत हे रोटी मांगने की भिखमंगे हैं ,लेकिन राजा जानता था की सैनिकों का विद्रोह भारी पड़ सकता है अतः कूटनीति से उसने नाम बदल कर सैनिक कर्मी से आधा सैनिक रख दिया गया ,लेकिन आधे सैनिकों की दशा में कोई अंतर नहीं आया। असंतोष फूटने लगा एक नेता की अगुआई में आधा सेनिको ने विद्रोह कर दिया राजा चतुर था उसने पांशा फेंका नेता को दरबारी बनने का प्रस्ताव दिया नेता पिघल गया कुछ भविष्य के सुनहरे सपने दिखा कर असंतोष को दबा दिया गया नेता दरबारी बन कर राजा का गुणगान करने लगा। समाज में दरबारियों ने बात फैला दी की राजा ने आधे सैनिकों को पूरे सैनिक बना दिया। आधा सैनिक हैरान परेशान सा ठगा सा मरता क्या न करता काम पर लौट आया।
आधे सैनिक को ना तो पूरी रोटी मिली थी न ही त्योहारों पर हलुआ सो उसने फिर से लामबंद होने की ठानी बहुत सारे संगठन बना लिए आधे इधर चले गए आधे उधर चले गए बाँकी हैरान परेशान जहाँ के तहाँ खड़े रहे। असंतोष भड़क उठा था सैनिक बैरकों से निकल कर सड़क पर आ गए कुछ बैरकों में बैठे बैठे हवा का अंदाज लगाते रहे नेताओ की दरबारी बनने की महत्वाकांक्षा भीड़ देख कर हिलोरें मारने लगी। राजा ने दरबारियों से समाज में दुष्प्रचार करवा दिया की "आंदोलन तो इनका शगल बन गया है मैंने इनको इतना दिया फिर भी पेट नहीं भर रहा है " आधा सैनिक अचंभित था 20 सालों से आधी रोटी खा कर जीने वालों का पेट राजा ने कैसे भर दिया उसे पता ही नहीं चला। समाज उसे बुरी दृष्टि से देखने लगा लेकिन उसने अपना प्रदर्शन जारी रखा। राजा ने दमन चक्र चलाया,लाठी मारी, जेलों में डाला ,वेतन काटा बहुत धोंस दी बेचारा सैनिक मरता क्या न करता काम पर वापिस लौट आया। राजा मुस्कराया ,दरबारियों ने ठहाका लगाया बेचारा आधा सैनिक मरता क्या न करता बच्चों ,परिवार और समाज के ताने सहते हुए सहमा, दुबका सा अपने काम पर लग गया।
मुझे समझ में नहीं आया कि गलती सेवा शर्तें स्वीकार कर देश सेवा करने वाली उस आधे सैनिक की है या उस राजा की जिसने शोषण के लिए ऐसी सेवा शर्तें तैयार की या उसकी जिसने उस शोषण की परम्परा को जारी रखा। अगर आपको या समाज को ये समझ में आये तो मुझे जरूर बता देना।

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

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