Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक ख़त अपने भाई के नाम

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

 


प्रिय भाई नमस्कार
यह देशद्रोही शब्द में तुम्हे अपने शब्दकोष से नहीं दे रहा हूँ बल्कि तुम्हारे स्वयं को इस शब्द से सम्बंधित करने के कारण तुम्हे पुकार रहा हूँ। यह शब्द शायद तुम्हे इसलिए लुभा रहा है क्योंकि इस शब्द से अपने आप को जोड़ कर तुम्हारी टी आर पी बढ़ रही है तुम देश नहीं विश्व पटल पर अपने को स्थापित करने में सफल हुए हो। तुम कहते हो यह तुम्हारी प्रवृत्ति है तुम्हारा चरित्र है क्यों न हो क्योंकि तुम उस पीढ़ी से सम्बद्ध हो जिसने मुश्किलें देखी ही नहीं हैं जिसने जीवन सिर्फ सुख और स्वतंत्रता को उच्छृंखलता में ही जिया है। तुम्हारे संस्कार सिर्फ विद्रोह ,माता पिता के दिए गए सुखों में कमिया ढूढ़ने एवं व्यवस्था के विरोध में साहित्यिक कुप्रवचन व दूसरों को गाली देने के ही हैं। तुम उस आधुनिक भारतीय परिवारों के वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हो जो स्वयं के लिए परिवार में जरा सी असुविधा होने पर विद्रोह कर परिवार से अलग होकर अपने अधिकारों की बात करते हो। तुम्हारे लिए बाकी के परिवार के सदस्यों की भावनाओं का कोई मूल्य नहीं है। भारतीय संस्कृति हमेशा से दूसरों के सुखों का ध्यान रखने की संस्कृति रही है लेकिन तुम उस अप संस्कृति की अवधारणा हो जो सिर्फ अपने सुख दुःख की बात जोर जोर से चिल्ला कर करता है और सड़क पर नारे लगाता है की देखो मेरे साथ मेरा परिवार कितना अन्याय कर रह हैं।
हो सकता है की उमर खालिद निर्दोष हो लेकिन वह आतंकियों के हाथों में खेल रहा है। कन्हैया निर्दोष हो सकता लेकिन वह उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो व्यवस्था से विद्रोह के नाम पर समाज एवं देश को बाटने की कोशिश में लगा हुआ है। इन दोनों से ज्यादा दोषी तो आप हैं जो इन्हे सही करार दे रहे हैं देश को धर्म ,दलित सवर्ण ,छूत अछूत ,जाति वर्ग में बटे कई हज़ार साल हो गए यह कोई दो तीन साल में नहीं बटा है। यह हज़ारों साल की कुप्रथाएँ देश भुगत रहा है लेकिन आप लोगों ने कितनी चतुरता से इसे वर्तमान व्यवस्था के माथे मढ़ दिया।
तुमने हनुमनथप्पा की पत्नी के चेहरे का दर्द नहीं देखा होगा तुमने कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए अमोल कालिया ,अशोक यादव ,अनुज नायर और इनके जैसे सैकड़ों शहीदों की माँ बहनों की आँख के आसूं भी नहीं देखे होंगे न ही तुमने बेघर होते अपनों की मौत पर आंसू बहाते कश्मीरियों को देखा होगा नहीं तो तुम उन लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे होते जो व्यवस्था को तो कोसते हैं ,गाली देते हैं किन्तु चुपचाप सो जाते हैं। देश विचार धाराओं से नहीं बदलता देश एक्शन से बदलता है ,देश अच्छे कार्यों से बदला जाता है। देश सड़कों पर भारत विरोधी नारों से नहीं बदलेगा देश प्रतिक्रियाओं से नहीं बदलेगा। अपने आप को देशद्रोह से जोड़ना तुम्हारी प्रतिक्रिया हो सकती है उस व्यवस्था के खिलाफ जो देश में नासूर बनी हुई जो गरीब को समान अवसर नहीं दे पा रही है ,जो अमीर को और अमीर गरीब को और गरीब बना रही है ,जो युवाओं को रोजगार की जगह अँधेरे गर्त में धकेल रही है। लेकिन इस प्रतिक्रिया को विध्वंस में मत बदलो नारे नहीं समाधान ढूंढो। नारे लगा कर देश के टुकड़े करने की बात से व्यवस्थाएं नहीं बदलती।
संविधान और संवैधानिक मूल्य सबके लिए हैं। तुम व्यक्ति ,सरकार एवं नीतियों की आलोचना पर असहमति के अधिकारी हो और होना भी चाहिए लेकिन भारत के टुकड़े करने का अधिकार किस संविधान के तहत मांग रहे हो। किस संविधान के तहत अपनी विचारधारा को सही ठहराकर जो देश तोड़ने की बात करती हो के तहत अपने को देश द्रोही कहलाने पर गौरवान्वित हो रहे हो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अगर आप यह बातें आपके प्यारे पाकिस्तान के विरूद्ध पाकिस्तान में करते तो अब तक मौत के मुहं में होते ,अगर यह बातें तुम चीन में करते तो शा यद थ्यानमेन चौक पर कुचल दिए जाते भारत को छोड़ कर किसी भी देश में अगर तुम बहादुरी दिखाते तो आज तुम्हारा अस्तित्व ही न बचता लेकिन इस देश को देखो जो तुम्हे सुन भी रहा है और सहन भी कर रहा है।
निंदा और स्तुति हर विचारधारा के साथ होती हैं। विचारधाराओं में टकराव भी स्वाभाविक है। लेकिन एक तरफ़ा आलोचना कभी भी देश द्वारा स्वीकार नहीं की जाएगी। तुम संविधान और संसद को बदलना चाह रहे हो ,देश के टुकड़े भी करना चाहते हो और देश का साथ भी चाहते हो। भाषणों और नारों से व्यवस्था की आलोचना करके तुम कुछ समूहों को लुभा सकते हो लेकिन इस व्यवस्था का समाधान नही दे सकते हो। तुम्हारे अनुसार राष्ट्रवाद एक ढोंग है संकीर्णता है तुम अपनी संतानो को ऐसे राष्ट्रवाद से दूर रखना चाहते हो इसकी शिक्षा उन्हें नहीं देना चाहते हो तो मत दो ये तुम्हारा अधिकार है लेकिन लेकिन उन्हें राष्ट्र को तोड़ने की शिक्षा भी मत देना जैसी शिक्षा तुमको मिली है तुम्हारे जनक और गुरु भी पश्चाताप कर रहे होंगे की उन्होंने तुम्हे क्यों जन्म दिया एवं ऐसी शिक्षा दी।
अंधे राष्ट्र वादी और अंधे वामपंथी होना दोनों खतरनाक है। भारतीय वामपंथ प्रायः मृत प्रायः है एवं विचारधारा भी देश के दृश्यपटल से ओझल होने की कगार पर है क्योंकि इस विचारधारा ने देश को कुछ नहीं दिया इसलिए नकार दी गई क्योंकि नाकारा लोगों का इस देश में कोई स्थान नहीं है। अगर आप को इस देश के किसान ,मजदूर एवं भारत की विभिन्नताओं की परवाह होती तो आप उन मुट्ठी भर लोग जो भारत को तोड़ने की बात कर रहें हैं के साथ अपने आप को खड़ा नहीं कर रहे होते। अगर आप को इस देश से प्यार होता तो आप देश में जो अन्याय ,असमानता है उनके विरुद्ध संविधान के तहत आवाजें बुलंद कर रहे होते लेकिन तुम तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर शब्दों के उच्छृंखल आलेखों से अपनी विचारधारा जो देश को तोड़ने की बात करती है के प्रसार में व्यस्त हो।
तुम मोदी का पुरजोर विरोध करते तो शायद देश तुम्हारे साथ खड़ा होता ,सरकार का विरोध करते तो भी देश तुमको सम्मान देता ,व्यवस्था का विरोध करते तो भी पूरा देश तुम्हारे साथ होता लेकिन देश को तोड़ने की बात करके या उनका साथ देकर तुमने देश के मासूम लोगों की भावनाओं को आहत किया है।
तुम्हारी हर सोच जो देश में असमानता ,गरीबी ,शोषण को इंगित करती हो उसके साथ हम सभी हैं लेकिन अगर देश तोड़ने की बात करोगे तो न देश स्वीकार करेगा ने तुम्हारे अपने |
तुम्हारा अपना
भाई

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ