सुशील शर्मा
एक शरीर पड़ा होगा
ऑपरेशन थियेटर में
बेहोश असहाय सा
कुछ उपकरण लगे होंगे
शरीर के चारों और
डॉक्टर एप्रन पहने
ऑपरेशन थियेटर में
घुस रहे होंगे बचते हुए
अपने लोगों की प्रश्न
पूछती निगाहों से
लाल बल्ब जला होगा
बाहर सभी रिश्ते
दुआ कर रहे होंगे
कुछ नमाज
कुछ प्रार्थनाएं
कुछ अरदास
गूंज रही होंगी
सभी रिश्तों के मन में
दिलासा देते हुए
एक दूसरे को
कुछ भावुक
कुछ उदास
कुछ व्यग्र
कुछ व्यथित
कुछ भावहीन
बैठे होंगे बेंचों पर
एक रिश्ता जो
जन्मों से जुड़ा है
उस के भीतर
उठ रहा होगा
व्यथा और दुःख
का उफनता समुद्र
फिर भी शांत
चिंतातुर अश्रुमिश्रित
भावुक आँखे
दे रही होंगी सबको
भावुक दिलासा
सब ठीक होगा
अंदर बेहोश पड़े
भावहीन शरीर पर
डॉक्टर के औजार
चल रहे होंगे
और मैं शांत स्थिर
अविचल मन से
करता रहा एक प्रार्थना
माँ उस बेहोश शरीर को
कर दो पुनः जीवंत
उत्साह व उमंग से पूर्ण
और इस दीवाली को
करो शुभ ज्योतिर्मय।
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