Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ईर्षा

 

---------------

काली नागिन

विष फुफकारती

मन की ईर्ष्या।

------------------------

मन में ईर्षा

स्वाभाविक पृवत्ति

अवहेलनीय।

---------------------

हीनता बोध

पनपती है ईर्ष्या

दे संकीर्णता।

-----------------

 

 

 

सुशील कुमार शर्मा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ