सुशील शर्मा
यूँ डर की तो न कोई बात थी फिर भी तुम चले गए।
अभी तो न की मुलाकात थी फिर भी तुम चले गए।
तोड़ कर खुद का आशियाना तुम्हे बनाया था।
कसमें निभाने की बात थी फिर भी तुम चले गए।
सोचा था रोक लूंगा तुम्हे मुहब्बत का वास्ता देकर।
जिंदगी साथ निभाने की बात थी फिर भी तुम चले गए।
चाँद के साथ पीली अमराई बुला रही थी हमें।
आज फिर आने की बात थी फिर भी तुम चले गए।
सैकड़ों शिकवे शिकायत रहे होंगे मुझसे तुम्हे।
मगर प्यार करने की भी बात थी फिर भी तुम चले गए।
याद में तेरी अश्क आँखों में उतर आते हैं।
गोद में आंसू बहाने की बात थी फिर भी तुम चले गए।
कोशिश बहुत की कि तुम रुक जाओ।
यह हसरत जताने की बात थी फिर भी तुम चले गए।
तुझे पाने के अरमां दिल में बहुत थे पर क्या करते।
और भी रिश्ते निभाने की बात थी फिर भी तुम चले गए
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY