सुशील शर्मा
अखंड प्रचंड प्रतापित
हे प्रभु मारुतिनंदन।
वीर धीर गंभीर सुवासित
हे कपि कुलवन्दन।
राम के काज सम्हालत
तुम हे वानर कुलधीश।
आगम निगम बखानत
तुम को हे शिरोमणि कपीश।
रावण दर्प ढहायो लंका
आग जलायो हे कपि मणि।
सीता दुःख मिटायो सुरसा
आशिष पायो हे भक्त शिरोमणि।
अहिरावण को मार स्वामी
मुक्त करायो हे गिरी धारक।
सत योजन वारिधि को
लांघयो हे संकट के मारक।
अतुलित बल के धाम
अष्ट सिद्धि के दायक।
नवधा भक्ति के इष्ट
भुक्ति मुक्ति प्रदायक।
लक्ष्मण प्राण बचायो आपने
प्रभु को हर संकट से उबारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को
जो तुमसे नही जात है टारो।
चरण परो प्रभु दास *सुशील*
अब तो सुधि ले लीजे।
अष्ट सिद्धि नव निधि के
संग चरणों की रज दीजे।
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