छंद -कुंडलियां
सुशील शर्मा
1.
अंधी बहरी जनम से ,हेलन केलर नाम।
मात पिता चिंतित रहें ,रोते सुबहा शाम।
रोते सुबहा शाम,भविष्य क्या इसका होगा।
फूटे इसके भाग ,पाप क्यों इसने भोगा।
कह सुशील कविराय ,साथ न कोई सम्बन्धी।
हेलन थी असहाय ,जनम से गूंगी अंधी।
2.
शिक्षक गुरु उसको मिली ,ऐन सुलिवान नाम।
नया जनम उसको मिला ,पढ़ती सुबहा शाम।
पढ़ती सुबहा शाम,सीख गई सारी शिक्षा।
बनन लगे सब काम ,पास की सभी परीक्षा।
कह सुशील कविराय ,बनो स्वाभिमानी रक्षक।
लड़कर जीतो आज ,जिजीविषा अपना शिक्षक।
3. .
इच्छा शक्ति अगर आपकी ,होती है मजबूत।
कठिन काम सीधे लगें ,मिले सम्मान अकूत।
मिले सम्मान अकूत,सफलता पास बुलावे।
जीवन बने सुयोग ,विपत फिर पास न आवे।
कह सुशील कविराय ,मांग प्रभु चरणों की भक्ति।
कार्य होय सब सिद्ध ,जगा जीवनी इच्छा शक्ति।
4.
जो मन को आगे करे ,सो ही पीछे होय।
मन को जो पीछे करे ,जग जीते वो सोय।
जग जीते वो सोय,वो कभी हार न माने।
पूरे होवें काम ,सभी जो मन में ठानें।
कह सुशील कविराय,नहीं तुम हारो जीवन।
मौत खड़ी बौराय ,ठान कर निकले जो मन।
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