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हिंदी दिवस पे का लिखूं का कहूँ

 

हिंदी दिवस पर विशेष )

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

 

 

"मेरा मानना है कि जब तक स्थानीय भाषाओँ में साहित्य नहीं लिखा जायेगा तब एक साहित्य की मौलिक अवधारणा पर अंग्रेजियत सवार रहेगी। हिंदी से सम्बंधित स्थानीय भाषाओँ में साहित्य रचना बहुत कम हो रही है इस कारण हिंदी के शब्दकोष को नए आयाम नहीं मिल रहे हैं। मेरी ये बुंदेलखंडी रचना हिंदी की वास्तविक स्थिति को इंगित कर रही है। "

हिन्दी दिवस के अवसर पर मुझे कुछ लिखना था ,सोच रहा था क्या लिखूं ?इसी सोच विचार में जा रहा था तभी राधे चाचा मिल गए ,साहित्य की समझ रखते हैं लेकिन शुद्ध बुंदेलखंडी में बात करते हैं ,कहने लगे बेटा चाय पी ले मैंने सोचा क्यों न हिंदी दिवस पर इनके विचार जाने जाएँ। बस चाचा शुरू हो गए। उनके विचार शुद्ध बुंदेलखंडी या कहूँ नरसिंहपुरिया भाषा में संकलित करके आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।

"हिंदी मेरे खून में हे ,जा से भौत पीड़ा होत हे की हिंदी की जा का दुर्दशा होत जा रॅई हे।मन में हूक सी उठत हे की हिंदी की जा गत काय हो रई हे। हमरी हिन्दी ने घर की बची ने घांट की। जेई त्रासदी हे के हिंदी न हमें रोजगार दिलवा पा रई हे न हमारे समाज हे एक कर पा रई हे। राजनीत के चलत भय हिंदी रसातल में जा रई हे।

हिंदी हे ले के भौत पेलेह से विवाद व विरोध बनो हे। दक्खन भारत में जो मानो जात हे कि हिंदी उन पे थोप रैं हैं ,उनको तरक है के हिन्दी को उपयोग बढ़वे से दूसरी भाषाओं और बोलियों पे असर पड़ हे। जा कारन से अहिन्दी भाषा वारे अंग्रेजी की ज्यादा पूछ परख करत हैं। उन्हें डर लगत हे की हिंदी फेल के उन्हें मिटा दे हे। तमिलनाडु और केरल में जेंसई कुई ने हिंदी में बात करी तेंसई उनने दुगनो पइसा वसूलो।

हिंदी भाषा फ़ैल के सब भाषाओं हे मिटा दे हे जा को अंदेशों हमरे संविधान बनाबे बारों हे भी हतो ,जइसे अंगेरजी से हिंदी पे आवे के लाने सिरफ़ 15 सालों को टेम लओ। वे मानत थे क जा टेम में सभई हिंदी हे अपना लें हैं। बा ज़माने के नेताओं ने जा समस्या हे गहराई से समझो हु हे जई से हिंदी हे झट्टी से राजभाषा को मुकुट पहना दओ। जबहीं से हिंदी हे ले के विरोध पैदा हो गओ। 1959 में हमरे बा टेम के प्रधानमंत्री जवाहर भैया ने अपने सांसदों हे कहने पड़ो थो के अंग्रेजी को प्रयोग राजभाषा जैसों ही 26 जनवरी 1965 के वाद तक चल हे।जा के बाद हिंदी विरोध के रूप में "हिन्दी हटाओ" आंदोलन निकर परो तईं हिन्दी वारों ने "अंग्रेजी हटाओ "को आंदोलन निकार दओ। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन जा से सफल नइ भओ के हिंदी वारे भी अंग्रेजी हे भौतई चाहत थे,पर "हिन्दी हटाओ"आंदोलन खूब सफल भओ और भारत की संसद ने जई आंदोलन के कारन अधिनियम हे बदल के हिंदी हे कमजोर कर दओ।

राजभाषा अधिनियम 1963 में पारत भओ थो पर जा आंदोलन के कारन वा में संसोधन करके बदल दओ बा में लिख दओ के अंग्रेजी राजकाज की भाषा जब तक रेहे जब तक सभई राज्य अपनी विधानसभाओं में हिंदी हे राजभाषा बनावे को संकलप पारत ने कर दें हैं। जा से बिलकुल साफ हो गयो के जो अधिनियम अंग्रेजी हे हमेशा के लाने राजकाज की भाषा बनाय रखवे के लाने बनो हे।जा धारा से बिलकुल नीचट हो गयो के जब तक सभई राज्यों की विधानसभाएं जा संकलप हे पारित ने कर देहें जब तक अंग्रेजी राजकाज की भाषा बानी रेहे। मुतके राज्य अहिन्दी भाषी हैं और उनसे जा अपेक्षा करवो के बे जो संकलप पारित कर देहे "भूत से पूत "मांगवे जैसों है।

केंद्र सरकार की शिक्षा नीति की "त्रिभाषा सूत्र "को हिंदी के कारन कई राज्यों ने अपनावे से मना कर दओ जे सब राज्य हिंदी हे कैसे पनपन दें हैं जा पे भौत बड़ो प्रश्नचिन्ह हे ?

केंद्र सरकार व कई हिंदी भाषी राज्यों की सरकारें हिंदी की बातें तो बड़ी बड़ी करत हैं पर खुदई हर काम अंग्रेजी में कर रये हैं। एक आर टी आई से खुलासो भओ हे की इनको 70 %काम अंग्रेजी में ही होत हे। फिर काहे की हिंदी राज भाषा ?

प्रदेशों में राजकाज की भाषा हिंदी बन जेहे जो भी संभव नई दिख रओ। जब तक दोई प्रदेश तैयार ने हूँ हैं जब तक हिंदी राजकाज की भाषा नई बन सके।

देश की छोटी से लेकर बड़ी अदालतों तक में हिंदी को उपयोग भौतई कम होत है। अधिनियम की धारा 3 अंनुच्छेद 348 में साफ लिखो हे के उच्चतम न्यायालय वा उच्च न्यायालय को काम काज अंग्रेजी में ही हु है।

जो भी बोली या भाषा होत हे बाकि महत्ता जबहीं बढ़त हे जब बा को उपयोग काम धंधे या व्यवसाय में होत हे। इते तो बजार में देख लो सभई चीजों पे 90 % अंग्रेजी में लिखो रहत हे। दवा और दारू पे तो 100 %अंग्रेजी में ही लिखो रहत हे डाकधर दवा को परचा भी अंग्रेजी में ही लिखत हे। आजकल सभई अपने मोड़ी -मोड़ों हे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। हिन्दी स्कूल में पढ़वे में नाक नीची होत है। सभई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं को काम काज अंग्रेजी में चल रओ हे। अंग्रेजी के बड़े बड़े स्कूल और कोचिंग अड्डे हिंदी हे जमीन में गाड़वे तैयार हैं। सभई "हिन्दी की चिन्दी निकालवे "घूम रये हैं।

जे सब बातों से तो जोई लग रओ हे के अंग्रेजी आज भी हम पे राज कर रई हे और आगे भी करत रेहे। हिंदी राज भाषा को मुकुट पहने रेहे पर राज की भाषा तो अंग्रेजी ही रेहे वेंसईं जैसें पार्षद तो पत्नी बन जात हे लेकिन काम तो पति ही करत हे।

आज हिंदी दिवस मनावे को ओचित्य जबहीं हु हे के हम बड़ी बड़ी बातें ने कर के हिंदी को अपने सुभाय व आचरन में उतार लेवें"।

 

 

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