एक कुत्ता मेरे पास आया
बोला तुम इंसान हो।
मैंने कहा तुम्हे कोई शक है
बोला शक नही मुझे यकीन है
तुम्हारे चेहरे पर इंसान का नकाब है।
इंसानियत का तुम्हारे पास कोई हिसाब है।
सुबह उठते ही सारा अपने पेट मे ठूंस लेते हो।
आफिस जाकर दूसरों से फिर घूंस लेते हो।
रात को शराब पीकर नोंचते हो जीवित मांस।
गला काट कर अपने भाई
का छीन लेते हो उसकी सांस।
काली कमाई से विशाल अट्टालिकायें बनाते हो
भगवान को पांच रुपये
का प्रसाद चढ़ा कर मूर्ख बनाते हो।
देश को चंद सिक्कों में दुश्मनों को बेच आते हो।
फिर भी गर्व से अपने को इंसान कहलवाते हो।
हम कुत्तों में न जात है न पात है
हमारी पूंजी हमारे जज्बात हैं।
जिसका हम नमक खातें है
जान उसके लिए लड़ा जाते हैं
उसके बाद भी हम कुत्ते कहलाते हैं।
हम चंद सिक्कों में
अपना स्वाभिमान नहीं बेचा करते हैं
आखरी दम तक मालिक से वफ़ा करते हैं।
अब तुम खुद फैसला करो
हम कुत्ते होकर भी इंसानियत
अपने अंदर पाले हैं।
तुम इंसान का मुखोटा लगा कर
कुत्तापन और हैवानियत के पुतले हो।
सुशील कुमार शर्मा
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